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________________ मोक्षशास्त्र (५) सूत्र नें पुद्गलाः बहुवचन है वह यह बतलाता है कि पुद्गलों को संख्या बहुत है तथा पुद्गल के अणु, स्कंधादि भेदके कारण कई भेद हैं । ३६६ (६) मन तथा सूक्ष्म पुद्गल इन्द्रियों द्वारा नहीं जाने जा सकते किन्तु जब वह सूक्ष्मता छोड़कर स्थूलता धारण करते हैं तब इन्द्रियों द्वारा जाने जा सकते हैं और तभी उनमें स्पर्श, रस, गंध, और वर्णकी अवस्था प्रत्यक्ष दिखाई देती है इसलिए यह निश्चित होता है कि सूक्ष्म अवस्था में भी वह स्पर्श, रस, गंध और वर्णवाले है | (७) पुद्गल परमाणुओं का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तन हुआ करता है । जैसे मिट्टी के परमाणुओंमेंसे जल होता है, पानीसे बिजली - श्रग्नि होती है, वायुके मिश्रणसे जल होता है । इसलिये यह मान्यता ठीक नहीं कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, मन इत्यादिके परमाणु भिन्न भिन्न प्रकारके होते है, क्योंकि पृथ्वी श्रादि समस्त पुद्गलके हो विकार हैं । अब धर्मादि द्रव्योंकी संख्या बतलाते हैं या आकाशादेकद्रव्याणि ॥ ६ ॥ अर्थः-- [ श्रा प्राकाशात् ] आकाश पर्यन्त [ एक द्रव्याणि ] एक एक द्रव्य हैं अर्थात् धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य और श्राकाश द्रव्य एक एक हैं । टीका जीव द्रव्य अनन्त है, पुद्गल द्रव्य अनंतानन्त है; और काल द्रव्य प्रसंख्यात अणुरूप हैं । पुद्गल द्रव्य एक नही है यह बताने के लिए, इस सूत्र में पहले सूत्रकी सधि करनेके लिये 'आ' शब्दका प्रयोग किया है । अब इनका गमन रहितत्त्व सिद्ध करते हैं निष्क्रियाणि च ॥७॥ प्रयं:- [च] और फिर यह धर्म द्रव्य, अधमं द्रव्य और आकाश
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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