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श्रध्याय ५ सूत्र ५
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है । रूप, रस, गंध, स्पर्शका गोल, त्रिकोण, चौकोर, लम्बे इत्यादि रूपसे जो परिणमन है सो मूर्ति है ।
( २ ) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और द्रव्यमन ये वणं, गंध, रस और स्पशंवाले हैं, इसीसे ये पांचो पुद्गल द्रव्य है । द्रव्यमन सूक्ष्म पुद्गल के प्रचयरूप आठ पांखुडीके खिले हुए कमलके आकार में हृदय स्थान में रहता है, वह रूपो अर्थात् स्पर्श, रस, गंध और वर्णवाला होनेसे पुद्गल द्रव्य है । ( देखो इस अध्यायके १६ वें सूत्रकी टीका )
( ३ ) नेत्रादि इंद्रिय सदृश मन स्पर्श, रस, गंध और वर्णवाला होनेसे रूपी है, मूर्तिक है, ज्ञानोपयोगमे वह निमित्त कारण है ।
शंका::- शब्द अमूर्तिक है तथापि ज्ञानोपयोगमे निमित्त है इसलिए जो ज्ञानोपयोगका निमित्त हो सो पुद्गल है ऐसा कहनेमे हेतु व्यभिचारित होता है ( अर्थात् शब्द श्रमूर्तिक है तथापि ज्ञानोपयोगका निमित्त देखा जाता है इसलिये यह हेतु पक्ष, सपक्ष और विपक्षमे रहने से व्यभिचारी हुआ ) सो मन मूर्तिक है ऐसा किस कारणसे मानना
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समाधान
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- शब्द अमूर्तिक नही है । शब्द पुद्गलजन्य है अतः उसमें मूर्तिकपन है. इसलिए ऊपर दिया हुआ हेतु व्यभिचारी नही है किंतु सपक्षमे ही रहनेवाला है, इससे यह सिद्ध हुआ कि द्रव्यमन पुद्गल है ।
( ४ ) उपरोक्त कथनसे यह नही समझना कि इन्द्रियोसे ज्ञान होता है । इन्द्रियाँ तो पुद्गल हैं, इसलिये ज्ञान रहित हैं; यदि इन्द्रियो से ज्ञान हो तो जोव चेतन न रहकर जड़-पुद्गल हो जाय, किन्तु ऐसा नही है । जीवके ज्ञानोपयोगकी जिसप्रकार की योग्यता होती है उसीप्रकार पुदगल इन्द्रियोका संयोग होता है, ऐसा उनका निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है, किन्तु निमित्त परद्रव्य होनेसे उनका आत्मामे अत्यन्त प्रभाव है और उससे वह आत्मामे कुछ कर सकता है या सहायता कर सकता है ऐसा मानना सो विपरीतता है ।