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मोक्षशास्त्र आयुका निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध होता है यह बताकर अस्ति-नास्ति स्वरूप बताया है।
सप्तभंगी के शेष पाँच भंगोंका विवेचन १-२-अस्ति और नास्ति यह दो जीवके स्वभाव सिद्ध कर दिया।
३-जीवके अस्ति और नास्ति इन दोनों-स्वभावोंको क्रमसे कहना हो तो 'जीव अस्ति नास्ति-दोनों धर्ममय है' ऐसा कहा जाता है. इसलिये जीव 'स्यात् अस्ति-नास्ति' है; यह तीसरा भंग हुआ।
४-अस्ति और नास्ति ये दोनों जीवके स्वभाव है तो भी वे दोनों एक साथ नहीं कहे जा सकते है, इस अपेक्षासे जीव 'स्यात अवक्तव्य' है यह चौथा भंग हुआ।
५-जीवका स्वरूप जिस समय अस्तिरूपसे कहा जाता है उसी समय नास्ति तथा दूसरे गुण इत्यादि नही कहे जा सकते-प्रवक्तव्य है; इसलिये जीव 'स्यात् अस्ति-प्रवक्तव्य' है; यह पांचवां भंग हुआ।
६-जीवका स्वरूप जिस समय नास्तिसे कहा जाता है उस समय अस्ति तथा अन्यगुरण इत्यादि नही कहे जा सकते-अवक्तव्य है; इसलिये जीव 'स्यात् नास्ति-प्रवक्तव्य' है यह छट्ठा भंग हुआ।
७-स्यात् अस्ति और स्यात् नास्ति यह दोनों भंग क्रमशः वक्तव्य हैं किन्तु युगपत् वक्तव्य नही है। इसलिये जीव 'स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य' है; यह सातवां भंग हुआ ।
जीवमें अवतरित सप्तभंगी १-जीव स्यात् अस्ति ही है । २-जीव स्यात् नास्ति ही है। ३जीव स्यात् अस्ति-नास्ति ही है। ४-जीव स्यात् प्रवक्तव्य ही है । ५-जीव स्यात् अस्ति अवक्तव्य ही है। ६-जीव स्यात् नास्ति-अवक्तव्य ही है । ७जीव स्यात् अस्ति-नास्ति वक्तव्य ही है।
स्यात्का अर्थ कुछ लोग 'संशय' करते हैं किन्तु यह उनकी भूल है। 'कथंचित् किसी अपेक्षासे' ऐसा उसका अर्थ होता है । स्यात् कथनसे ( स्याद्वादसे ) वस्तु स्वरूपके ज्ञानकी विशेष दृढ़ता होती है ।