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अध्याय ४ उपसंहार
३७३ म० २ सूत्र ११ से १७-जीवके विकारीभावोंका पर वस्तुओसे -कर्म, मन, वचन, शरीर, इन्द्रिय, परक्षेत्र इत्यादिके साथ कैसा निमित्त नैमित्तिकभाव है यह बतलाकर यह बताया है कि-जीव पराश्रयसे जीवके विकारीभाव करता है किंतु परनिमित्तसे विकारीभाव नही होते अर्थात् पर निमित्त विकारीभाव नही कराता यह अस्ति-नास्तिपन बतलाता है।
अ० २ सूत्र १५-जीवकी क्षयोपशमरूप पर्याय अपने अस्तिरूपसे है, परसे नहीं है ( नास्तिरूपसे है ) अर्थात् परसे-कर्मसे जीवकी पर्याय नही होती यह बताया है।
___ अ० २ सूत्र २७ जीवका सिद्धक्षेत्रके साथ कैसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है उसे बताते हैं।
अ० २ सू० ५० से ५२-जीवकी वेदरूप ( भाववेदरूप ) विकारी पर्याय अपनी योग्यतासे-अस्तिरूपसे है परसे नही है यह बताया है।
म० २ सू० ५३-जीवका आयुकर्मके साथ निमित्त-नैमित्तिकभाव वताया है; उसमें जीवका नैमित्तिकभाव जीव को अपनो योग्यतासे है और आयुकर्मसे अथवा परसे नही है ऐसा बताया है तथा निमित्त आयुकर्मका निश्चय सम्बन्ध जीव या किसी दूसरे परके साथ नही है ऐसा अस्ति-नास्ति भंगसे सिद्ध होता है।
अ० ३ सू० १ से ६ नारकोभावके भोगनेके योग्य होनेवाले जीवके किस प्रकारके क्षेत्रोका संबंध निमित्तरूपसे होता है तथा उत्कृष्ट आयुका निमित्तपना किसप्रकारसे होता है यह बताकर, निमित्तरूप, क्षेत्र या आयु वह जीव नहीं है किन्तु जीवसे भिन्न है ऐसा सिद्ध होता है।
अ० ३ सू० ७ से ३६ मनुष्यभाव या तिर्यंचभावको भोगनेके योग्य जीव के किसप्रकार के क्षेत्रोका तथा आयु का संबध निमित्तरूपसे होता है यह बताकर जीव स्व है और निमित्त पर है ऐसा अस्ति-नास्ति स्वरूप बतलाया है।
अ० ४ सू० १ से ४२ देवभाव और तिर्यंचभाव होनेपर तथा सम्यग्दृष्टि और मिथ्यावृष्टिरूप अवस्थामे जीवके कैसे परक्षेत्रोंका तथा