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२४ - समाज नें आत्मज्ञान के विषय में अपूर्व जिज्ञासा और जागृति
(१) जिसे सत्यकी ओर रुचि होने लगी है, जो सत्यतत्त्वको समभने वीर निर्णय करनेके इच्छुक हैं वह समाज, मध्यस्थता से शाखोकी स्वाध्याय और चर्चा करके नयाथं, अनेकान्त, उपादान निमित्त, निश्चय, व्यवहार दो नयोंकी सच्ची व्याख्या और प्रयोजन तथा मोक्षमार्गका दो प्रकारसे निरूपण, हेय उपादेय और प्रत्येक द्रव्यकी पर्यायोकी भी स्वतंत्रता केवलज्ञान और क्रमबद्ध पर्याय आदि प्रयोजनभूत विषयोमे उत्साहसे मध्यान कर रहे हैं और तत्त्वनिर्णयके विपयमे समाजमें खास विचारोका प्रवाह चल रहा है ऐसा नीचेके आधारसे भी सिद्ध होता है
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(२) श्री भारत० दि० जैन सघ ( मथुरा ) द्वारा ई० सन् १९४४ मैं प्रकाशित मोक्षमार्ग प्रकाशक ( पं० टोडरमलजी कृत ) की प्रस्तावना पृष्ठ में शास्त्रीजीने कहा है कि "अव तक शास्त्रस्वाध्याय और पारस्परिक चर्चाओ में एकान्त निश्चयी और एकान्तव्यवहारीको ही मिथ्यादृष्टि कहते सुनते आए हैं । परन्तु दोनो नयोका अवलम्वन करनेवाले भी मिथ्यादृष्टि हो सकते है यह आपकी ( स्व० श्री टोडरमलजीकी ) नई और विशेष चर्चा है । ऐसे मिथ्यादृष्टियोके सूक्ष्मभावोका विश्लेषण करते हुए आपने कई पूर्व वातें लिखी हैं । उदाहरण के लिए आपने इस बातका खण्डन किया है कि मोक्षमागं निश्चय व्यवहाररूप दो प्रकारका है । वे लिखते है कि यह मान्यता निश्चय व्यवहारावलम्बी मिथ्यादृष्टियो की है, वास्तवमे पाठक देखेंगे कि जो लोग निश्चय सम्यग्दर्शन, व्यवहार सम्यग्दर्शन, निश्चय रत्नत्रय, व्यवहार रत्नत्रय, निश्चयमोक्षमार्ग, व्यवहार मोक्षमार्ग इत्यादि भेदोकी रातदिन चर्चा करते रहते है उनके मंतव्य से पण्डितजीका मंतव्य कितना भिन्न है ? | इसीप्रकार आगे चलकर उन्होने लिखा है कि निश्चय व्यवहार दोनोंको उपादेय मानना भी भ्रम है, क्योंकि दोनों नयोंका स्वरूप परस्पर विरुद्ध हैं, इसलिये दोनों नयोंका उपादेयपना नहीं बन सकता । अभी तक तो यही धारणा थी कि न केवल निश्चय