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मोक्षशास्त्र अध्याय चौथा
भूमिका
इस शास्त्रके पहिले अध्यायके पहिले सूत्रमें यह बतलाया गया है कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी एकता ही मोक्षमार्ग है । तत्पश्चात् दूसरे सूत्रमें सम्यग्दर्शनका लक्षण 'तत्वार्थ श्रद्धान' कहा गया है । पश्चात् जिन तत्वोंके यथार्थ श्रद्धानसे सम्यग्दर्शन होता है उनके नाम देकर चौथे सूत्र में सात तत्त्व बताये गये हैं। उन सात तत्त्वोंमें पहिला जीवतत्त्व है। उस जीवका स्वरूप समझनेके लिए दूसरे अध्यायमें यह बताया गया है कि जीवके भाव, जीवका लक्षण, इन्द्रियाँ-जन्म-शरीर इत्यादिके साथ संसारी जीवोंका निमित्तनैमित्तिक संबंध कैसा होता है। तीसरे अध्यायमें चार प्रकारके संसारी जीवोंमेसे नारकी जीवोंका वर्णन किया है तथा जीवोंके निवास स्थान बतलाये हैं, और बतलाया है कि मनुष्य तथा अन्य जीवोंके रहनेके क्षेत्र कौनसे हैं तथा मनुष्य और तिर्यंचोंकी आयु इत्यादिके संबंधों कुछ बातें बताई गई हैं।
इसप्रकार संसारकी चार गतियोंके जीवोंमेंसे मनुष्य, तिर्यंच, और नरक इन तीनका वर्णन तीसरे अध्यायमें हो चुका है, अब देवाधिकार शेष रहता है, जो कि इस चौथे अध्यायमें मुख्यतासे निरूपित किया गया है। इसप्रकार अध्याय २ सूत्र १० में जीवके दो भेद (संसारी और मुक्त) बतलाये थे उनमें से संसारी जीवोसे संबंध रखनेवाला अधिकार वणित हो जाने पर मुक्त जीवोंका अधिकार शेष रह जाता है जो कि दशवें अध्यायमें वरिणत किया जायगा।