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अध्याय ४ सूत्र १-२-३ ऊलोक वर्णन
देवोंके भेद देवाश्चतुर्णिकायाः॥१॥ अर्थ-देव चार समूहवाले हैं अर्थात् देवोके चार भेद हैं-१. भवनवासी, २. व्यंतर, ३. ज्योतिषी और ४. वैमानिक ।
टीका देव-जो जीव देवगतिनामकर्मके उदयसे अनेक द्वीप, समुद्र तथा पर्वतादि रमणीक स्थानोमे क्रीड़ा करें उन्हें देव कहते है ॥१॥
भवनत्रिक देवोंमें लेश्याका विभाग आदितस्त्रिषु पीतांतलेश्याः ॥ २॥
अर्थ–पहिलेके तीन निकायोंमे पीत तक अर्थात् कृष्ण, नील, कापोत और पीत ये चार लेश्याएँ होती है।
टीका (१) कृष्ण-काली, नील नीले रंगकी, कापोत-चितकबरीकबूतरके रंग जैसी, पीतः-पीली।
(२) यह वर्णन भावलेश्याका है । वैमानिक देवोंकी भावलेश्याका वर्णन इस अध्यायके २२ वें सूत्र में दिया है ॥२॥
चार निकायके देवोंके प्रभेद 'दशाष्टपंचद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यंताः॥३॥
अर्थ-कल्पोपपन्न (सोलहवें स्वर्गतकके देव) पर्यन्त इन चारप्रकार के देवोके क्रमसे दश, आठ, पांच, और बारह भेद हैं।
टीका भवनवासियोके दश, व्यन्तरोके पाठ, ज्योतिषियोके पांच, और