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________________ ३३८ मोक्षशास्त्र पुष्करद्वीपके पहिले अर्धभागमें जम्बूद्वीपसे दूनी अर्थात् धातकीखण्ड बराबर सब रचना है । ___ (७) नरलोक ( मनुष्यक्षेत्र) जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड, पुष्करार्ध (पुष्करद्वीपका आधाभाग) लवणसमुद्र और कालोदघिसमुद्र इतना क्षेत्र नरलोक कहलाता है । (८) दूसरे द्वीप तथा समुद्र पुष्करद्वीपसे आगे परस्पर एक दूसरेसे घिरे हुए दूने दूने विस्तार वाले मध्यलोकके अन्ततक द्वीप और समुद्र हैं । (९) कर्मभूमि और भोगभूमिकी व्याख्या यहाँ असि, मसि, कृषि, सेवा, शिल्प, और वाणिज्य, इन छह कर्मों को प्रवृत्ति हो वे कर्मभूमियाँ हैं । जहाँपर उनकी प्रवृत्ति न हो वे भोगभूमियां कहलाती हैं। (१०) पन्द्रह कर्मभूमियाँ पाँच मेरुसम्बन्धी पाँच भारत, पांच ऐरावत और ( देवकुरु उत्तरकुरुको छोड़कर ) पांच विदेह इसप्रकार कुल पन्द्रह कर्मभूमियाँ है। (११) भोगभूमियाँ पांच हैमवत और पाँच हैरण्यवत् ये दश क्षेत्र जघन्य भोगभूमियाँ हैं । पाँच हरि और पांच रम्यक् ये दश क्षेत्र मध्यमभोगभूमियाँ है, और पाँच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु ये दश क्षेत्र उत्कृष्ट भोगभूमियां हैं। (१२) भोगभूमि और कर्मभूमि जैसी रचना मनुष्यक्षेत्रसे बाहरके सभी द्वीपोमें जघन्य भोगभूमि जैसी रचना है, परन्तु स्वयंभूरमणद्वीपके उत्तरार्धमे तथा समस्त स्वयंभूरमण समुद्र में और चारों कोनेकी पृथ्वियोमें कर्मभूमि जैसी रचना है । लवणसमुद्र और कालोदधिसमुद्रमें ९६ अन्तर्वीप हैं। वहां कुभोगभूमिकी रचना है, और वहाँ पर मनुष्य ही रहते हैं । उन मनुष्योंकी प्राकृतियां अनेक प्रकारको कुत्सित हैं।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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