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अध्याय ३ सूत्र ३६
३३७ थाली जैसा ) जम्बूद्वीप है। जम्बूद्वीपके बीच में एक लाख योजन सुमेरुपर्वत है, जिसकी एक हजार योजन जमीनके अन्दर जड़ है नव्वे हजार योजन जमीनके ऊपर है, और उसकी चालीस योजन की चूलिका (चोटी)
जम्बूद्वीपके बीचमे पश्चिम पूर्व लम्बे छह कुलाचल (पर्वत) है उनसे जम्बूद्वीपके सात खण्ड होगये हैं, उन सात खण्डोंके नाम भरत, हैमवत्, हरि, विदेह, रम्यक्, हैरण्यवत् और ऐरावत हैं।
(२) उत्तरकुरु-देवकुरु विदेहक्षेत्र में मेरुके उत्तरदिशामें उत्तरकुरु तथा दक्षिणदिशामें देवकुरुक्षेत्र है।
(३) लवणसमुद्र जम्बूद्वीपके चारों तरफ खाईके माफक घेरे हुए दो लाख योजन चौड़ा लवणसमुद्र है।
(४) धातकीखंडद्वीप लवरणसमुद्रके चारों ओर घेरे हुए चार लाख योजन चौड़ा धातकीखण्डद्वीप है। इस द्वीपमे दो मेरु पर्वत हैं, इसलिये क्षेत्र तथा कुलाचल (पर्वत) इत्यादि की सभी रचना जम्बूद्वीपसे दूनी है।
(५) कालोदधिसमुद्र घातकीखण्डके चारों ओर घेरे हुए आठ लाख योजन चौड़ा कालोदधिसमुद्र है।
(६) पुष्करद्वीप कालोदधिसमुद्रके चारो ओर घेरे हुए सोलह लाख योजन चौड़ा पुष्करद्वीप है। इस द्वीपके बीचोबीच वलय (चूड़ीके) के माकार, पृथ्वी पर एक हजार बावीस ( १०२२) योजन चौडा, सत्रहसौ इक्कीस योजन ( १७२१ ) ऊँचा और चारसौ सत्तावीस (४२७ ) योजन जमीनके अन्दर जड़वाला, मानुषोत्तर पर्वत है और उससे पुष्करद्वीपके दो खण्ड होगये हैं।