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अध्याय ३ सूत्र २४-२५-२६
३१५ अर्थ-भरतक्षेत्रका विस्तार, पाँचसौ छब्बीस योजन और एक यौजनके उन्नीस भागोंमेंसे ६ भाग अधिक है।
टीका
१. भरत क्षेत्रका विस्तार ५२६१९ योजन है। (देखो सूत्र ३२)
२. भरत और ऐरावत क्षेत्रके बीचमे पूर्व पश्चिम तक लंबा विजयाध पर्वत है जिनसे गंगा-सिन्धु और रक्ता-रक्तोदा नदियोके कारण दोनों क्षेत्रोंके छह छह खंड हो जाते है उनमें बीचका आर्यखंड और बाकीके पाँच म्लेच्छ खंड है। तीर्थंकरादि पदवीधारी पुरुष भरत-ऐरावतके मार्यखंडमे, तथा विदेह क्षेत्रोमे ही जन्म लेते है ॥ २४ ॥
आगेके क्षेत्र और पर्वतोंका विस्तार तद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः॥२५॥
अर्थ-विदेहक्षेत्र तकके पर्वत और क्षेत्र भरतक्षेत्रसे दूने २ विस्तारवाले हैं ।। २५ ॥
विदेह क्षेत्रके आगेके पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तार
उत्तरा दक्षिणतुल्याः ॥ २६ ॥ ___ अर्थ-विदेह क्षेत्रसे उत्तरके तीन पर्वत और तीन क्षेत्र दक्षिणके पर्वत और क्षेत्रोंके समान विस्तारवाले हैं ।
टीका क्षेत्रो और पर्वतोंका प्रकार नीचे प्रमाण हैक्षेत्र और पर्वत विस्तार-योजन ऊंचाई ऊंडाई १. भरतक्षेत्र ५२६१९ "
x २. हिमवत् कुलाचल १०५२१३ " १०० यो० २५ यो०