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मोक्षशास्त्र ३. हैमवत्क्षेत्र २१०५५ " ४. महा हिमवत् कुलाचल ४२१०११ " ५. हरिक्षेत्र
८४२१११ ६. निषध कुलाचल १६८४२२ " ७. विदेहक्षेत्र ३३६८४१ " ८. नील कुलाचल १६८४२१९ " ६. रम्यक् क्षेत्र
८४२१११ " १०. रुक्मिकुलाचल ४२१०१३ " ११. हैरण्यक्षेत्र
२१०५१ १२. शिखरीकुलाचल १०५२१३ " १३. ऐरावतक्षेत्र ५२६१६ ॥
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[ कुलाचलका अर्थ पर्वत समझना चाहिये ] ___ भरत और ऐरावतक्षेत्र में कालचक्रका परिवर्तन भरतैरावतयोवृद्धिहासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवस
पिणीभ्याम् ॥ २७॥ __ अर्थ-छह कालोंसे युक्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के द्वारा भरत और ऐरावत क्षेत्रमें जीवोंके अनुभवादि की वृद्धि-हानि होती रहती है।
टीका १. बोस कोड़ा कोड़ी सागरका एक कल्पकाल होता है उसके दो भेद हैं; (१)-उत्सर्पिणी-जिसमें जीवोंके ज्ञानादि की वृद्धि होती है, और (२)-प्रवसर्पिणी-जिसमें जीवोके ज्ञानादिका ह्रास होता है।