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________________ मध्याय ३ सूत्र ३-४-५ नील, पांचवीमें ऊपरके भागमें नील और नीचेके भागमे कृष्ण और छठवीं तथा सातवी पृथ्वीमें कृष्णलेश्या होती है । २. परिणाम-~यहाँ स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्दको परिणाम कहा है। ३. शरीर-पहिली पृथ्वीमें शरीरकी ऊँचाई ७ धनुष्य ३ हाथ और ६ अंगुल है, वह हुडक आकारमे होता है । तत्पश्चात् नीचे २ को पृथ्वीके नारकियोके शरीर की ऊँचाई क्रमशः दूनी दूनी है। ४. वेदना-पहिलेसे चौथे नरक तक उष्ण वेदना है, पांचवेंके ऊपरी भागमें उष्ण और नीचले भागमें शीत है, तथा छुट्ट और सातवेंमें महाशीत वेदना है । नारकियो का शरीर वैक्रियिक होनेपर भी उसके शरीरके वैक्रियिक पुद्गल मल, मूत्र, कफ, वमन, सड़ा हुआ मास, हाड़ और चमड़ी वाले औदारिक शरीरसे भी अत्यन्त अशुभ होता है । ५. विक्रिया-उन नारकियोंके क्रूर सिंह व्याघ्रादिरूप अनेक प्रकारके रूप धारण करनेकी विक्रिया होती है ।। ३ ।। नारकी जीव एक दूसरेको दुःख देते हैं परस्परोदीरितदुःखाः ॥४॥ अर्थ-नारकी जीव परस्पर एक दूसरेको दुःख उत्पन्न करते हैं (-वे कुत्तेकी भांति परस्पर लड़ते हैं ) ॥ ४॥ विशेष दुश्ख संक्लिष्टाऽसुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः ॥५॥ अर्थ-और उन नारकियोंके चौथी पृथ्वीसे पहिले पहिले (अर्थात् तीसरी पृथ्वी पर्यंत) अत्यन्त संक्लिष्ट परिणामके घारक अंब अंबरिष आदि जातिके असुरकुमार देवोंके द्वारा दुःख पाते हैं अर्थात् अंब-अंबरिष असुर- . कुमारदेव तीसरे नरक तक जाकर नारकी जीवोंको दुःख देते हैं तथा उनके
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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