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मोक्षशास्त्र
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मनुष्यलोकमें ऐसा कोई स्थान नही है ।
जो दूसरोंको मारकर प्रतिकूलताको दूर करना चाहते हैं वे जितने विरोधी मालूम होते है उन सबको मारना चाहते हैं, फिर चाहे प्रतिकूलता करनेवाले दो चार हों या बहुत हों उन सबका नाश करनेकी भावनाका सेवन निरंतर करता है । उसके अभिप्रायमें अनंतकाल तक अनंतभव धारण करने के भाव भरे पड़े है । उस भवको अनंतसंख्याके कारण में अनत जीवोंको मारनेका संहार करनेका अमर्यादित पाप भाव है । जिस जीवने कारणमें अनन्तकाल तक अनन्त जीवोंको मारनेके, बाधा डालनेके भाव सेये हैं उसके फलमें उस जीवको तीव्र दुःखोंके संयोगमें जाना पड़ता है, और वह नरकगति है । लाखों खून ( - हत्या ) करनेवालेको लाखों बार फाँसी मिलती हो ऐसा इस लोकमें नहीं होता, इसलिये उसे अपने क्रूरभावोंके अनुसार पूरा फल नही मिलता; उसे अपने भावोंका पूरा फल मिलनेका स्थान - बहुतकाल तक अनन्त दुःख भोगनेका क्षेत्र नरक है, वह नीचे शाश्वत है || २ ॥
नारकियोंके दुःखोंका वर्णन
नारका नित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रियाः ॥ ३ ॥
अर्थ - नारकी जीव सदैव ही अत्यन्त अशुभ लेश्या, परिणाम, शरीर, वेदना, और विक्रियाको धारण करते हैं ।
टीका
१. लेश्या - यह द्रव्यलेश्याका स्वरूप है जो कि आयु पर्यंत रहती है । यहाँ शरीरके रंगको द्रव्यलेश्या कहा है । भावलेश्या अंतर्मुहूर्त में वदल जाती है उसका वर्णन यहाँ नही है । अशुभलेश्याके भी तीन प्रकार हैं कापोत, नील और कृष्ण । पहिली और दूसरी पृथ्वीमें, कापोतलेश्या, तीसरी पृथ्वी में ऊपर के भागमें कापोत और नीचेके भागमें नील, चौथीमें