________________
२६४
मोक्षशास्त्र पहिले मुक्त हुए जीवोंके कितने ही प्रदेश हैं, उन सबमें से पार होकर जीव लोकके अग्नभागमें जाता है । इसलिये अब उसमें उस आकाश श्रेणीमें निमित्तत्वका आरोप आया और दूसरोंमें नहीं आया, इसके कारणकी जांच करने पर मालूम होता है कि वह मुक्त होनेवाला जीव किस आकाशश्रेणीम से होकर जाता है इसका ज्ञान करानेके लिए उस 'आकाशश्रेणी' को निमित्त संज्ञा दी गई है। क्योंकि पहिले समयकी सिद्धदशाको आकाशके साथका संबंध बतानेके लिये उस श्रेणीका भाग ही अनुकूल है, अन्य द्रव्य, गुरण या पर्याय उसके लिये अनुकूल नही है।
२-सिद्धभगवानके उस समयके ज्ञानके व्यापारमें संपूर्ण-आकाश तथा दूसरे सब द्रव्य, उसके गुरण तथा उसकी त्रिकालवर्ती पर्याय ज्ञेय होती हैं इसलिये उसी समय ज्ञानमात्रके लिये वे सब ज्ञेय 'निमित्त' संज्ञाको प्राप्त होते है।
३-सिद्धभगवानके उस समयके परिणमनको काल द्रव्यकी वही समयकी पर्याय 'निमित्त' संज्ञाको प्राप्त होती है, क्योंकि परिणमनमें वह अनुकूल है, दूसरे अनुकूल नही हैं।
४-सिद्धभगवानकी उस समयकी क्रियावतीशक्तिके गति परिणाम को तथा ऊर्ध्वगमन स्वभावको धर्मास्तिकायके किसी आकाश क्षेत्रमें रहने वाले प्रदेश उसी समय 'निमित्त' संज्ञाको प्राप्त होते हैं, क्योंकि गतिमे वही अनुकूल हैं, दूसरे नही।
५-सिद्धभगवानके ऊर्ध्वगमनके समय दूसरे द्रव्य (जो कि आकाश क्षेत्रमें हैं वे तथा शेष द्रव्य ) भी 'निमित्त' संज्ञाको प्राप्त होते हैं, क्योंकि उन सब द्रव्योंका यद्यपि सिद्धावस्थाके साथ कोई संबंध नही है तथापि विश्व को सदा शाश्वत रखता है इतना बतानेके लिये वह अनुकूल निमित्त है।
६-सिद्धभगवानकी संपूर्ण शुद्धताके साथ कर्मोका अभावसंबंध है, इतनी अनुकूलता बतानेके लिये कर्मोका अभाव भी 'निमित्त' संज्ञाको प्राप्त होता है, इसप्रकार अस्ति और नास्ति दोनों प्रकारसे निमित्तपनेका आरोप