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अध्याय २-सूत्र ४३.४४
२७७ तेजस, कार्मण और गोदारिक अथवा तैजस कार्मण और वैक्रियिक, चार हो तो तेजस, कार्मण औदारिक और आहारक, अथवा तैजस कार्मण औदारिक और (लब्धिवाले जीवके ) वैक्रियिक शरीर होते हैं। इसमे (लब्धिवाले जीवके) औदारिकके साथ जो वैक्रियिक शरीर होना बतलाया है वह शरीर औदारिक की जातिका है, देवके वैक्रियिक शरीरके रजकरणो की जातिका नही ॥४३॥ (देखो सूत्र ३६ तथा ४७ की टीका)
कार्मण शरीर की विशेषता निरुपभोगमन्त्यम् ॥४४॥ अर्थ-[ अन्त्यम् ] अंतका कार्मण शरीर [ निरुपभोगम् ] उपभोग रहित होता है।
टीका १. उपभोग-इन्द्रियोंके द्वारा शब्दादिकके ग्रहण करना (-जानना ) सो उपभोग है।
२. विग्रहगतिमे जीवके भावेन्द्रियां होती हैं (देखो सूत्र १८) वहाँ जड़ इन्द्रियोंको रचनाका अभाव है [ देखो सूत्र १७ ] उस स्थितिमे शब्द, रूप, रस, गंध या स्पर्शका अनुभव (-ज्ञान ) नही होता, इसलिये कार्मण शरीरको निरुपभोग ही कहा है।
प्रश्न-तैजस शरीर भी निरुपभोग ही है तथापि उसे यहाँ क्यो नहीं गिना है ?
उत्तर-तैजसशरीर तो किसी योगका भी कारण नहीं है इसलिये निरुपभोगके प्रकरणमे उसे स्थान नही है। विग्रहगतिमें कार्मण शरीर कार्मण योगका कारण है (देखो सूत्र २५) इसलिये वह उपभोगके योग्य है या नही~यह प्रश्न उठ सकता है । उसका निराकरण करनेके लिये यह सूत्र कहा है । तैजसशरीर उपभोगके योग्य है या नही यह प्रभ ही नही उठ सकता, क्योकि वह तो निरुपभोग ही है, इसलिये यहाँ उसे नही लिया गया है।