________________
२७०
मोक्षशास्त्र एक एकको मिली हुई तीन अर्थात् सचित्ताचित्त, शीतोष्ण, और संवृत विवृत [ तत् योनयः ] ये नव जन्मयोनियाँ हैं ।
टीका जीवोके उत्पत्तिस्थानको योनि कहते हैं; योनि आधार है और जन्म आधेय है।
२. सचित्चयोनि-जीव सहित योनिको सचित्त योनि कहते हैं।
संवृत्तयोनि-जो किसीके देखनेमें न आवे ऐसे उत्पत्तिस्थान को संवृत ( ढकी हुई ) योनि कहते हैं।
विवृतयोनि-जो सबके देखनेमें आये ऐसे उत्पत्ति स्थानको विवृत (खुली ) योनि कहते हैं।
१. मनुष्य या अन्य प्राणीके पेटमें जीव ( कृमि इत्यादि ) उत्पन्न होते हैं उनकी सचित्तयोनि है।
२. दीवालमें, मेज, कुर्सी इत्यादिमें जीव उत्पन्न हो जाते हैं, उनकी अचित्तयोनि है।
___ ३. मनुष्यकी पहिनी हुई टोपी इत्यादिमें जीव उत्पन्न हो जाते है उनकी सचित्ताचित्तयोनि है।
४. सर्दी में जीव उत्पन्न होते है उनकी शीतयोनि है । ५-गर्मी में जीव उत्पन्न होते है उनकी उष्ण योनि है । ६-पानीके खड्ड में सूर्यकी गर्मी से पानीके गर्म हो जाने पर जो जीव उत्पन्न हो जाते हैं उनकी शीतोष्णथोनि है । ७-बंद पेटीमें रखे हुए फलोंमें जो जीव उत्पन्न हो जाते है उनकी संवृतयोनि है। -पानीमें जो काई इत्यादि जीव उत्पन्न होते हैं उनकी विवृतयोनि है और 8-थोड़ा भाग खुला हुआ और थोड़ा ढका हुआ हो एसे स्थानमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंकी संवृतविवृतयोनि होती है।
५. गर्भयोनिके प्राकारके तीन भेद हैं-१-शंखावर्त २-कूर्मोन्नत और ३-वंशपत्र । शंखावर्तयोनिमे गर्भ नहीं रहता, कूर्मोन्नतयोनिमें तीर्थंकर चक्रवर्ती, वासुदेव प्रतिवासुदेव और बलभद्र उत्पन्न होते हैं, उनके अतिरिक्त