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अध्याय २ सूत्र २० और शब्द यह पाँच क्रमशः [तत् अर्थाः] उपरोक्त पाँच इन्द्रियोंके विषय हैं अर्थात् उपरोक्त पाँच इन्द्रियाँ उन उन विषयोंको जानती हैं।
टीका १. जाननेका काम भावेन्द्रियका है, पुद्गल इन्द्रिय निमित्त है। प्रत्येक इन्द्रियका विषय क्या है सो यहां कहा गया है। यह विषय जड़पुद्गल हैं।
२. प्रश्न-यह जीवाधिकार है फिर भी पुद्गलद्रव्यकी बात क्यों ली गई है ?
उचर-जीवको भावेन्द्रियसे होनेवाले उपयोगरूपज्ञानमें ज्ञेय क्या है यह जाननेके लिये कहा है । ज्ञेय निमित्त मात्र है, ज्ञेयसे ज्ञान नही होता किंतु उपयोगरूप भावेन्द्रियसे ज्ञान होता है अर्थात् ज्ञान विषयी है और ज्ञेय विषय, यह बतानेके लिये यह सूत्र कहा है।
३. स्पर्श-आठ प्रकारका है शीत, उष्ण, रूखा, चिकना, कोमल, कठोर, हलका और भारी ।
रस-पांच प्रकारका है खट्टा, मीठा, कडुवा, कषायला, चिरपरा। गंध-दो प्रकारकी हैं सुगन्ध और दुर्गन्ध । वर्ण-पांच प्रकारका है काला, पीला, नीला, लाल और सफेद ।
शब्द-सात प्रकारका है षड्ज, रिषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, घेवत, निबाघ ।
इसप्रकार कुल २७ भेद हैं उनके संयोगसे असंख्यात भेद हो जाते हैं।
४-सैनो जीवोके इन्द्रिय द्वारा होनेवाले चैतन्त्र व्यापारमें मन निमित्त रूप होता है।
५-स्पर्श, रस, गंध और शब्द विषयक ज्ञान उस २ विषयोंको जाननेवाली इन्द्रियके साथ उस विषयका संयोग होनेसे ही होता है । आत्मा चक्षुके द्वारा जिस रूपको देखता है उसके योग्य क्षेत्रमे दूर रहकर उसे देख सकता है ॥ २०॥