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मोक्षशास्त्र परिपूर्ण उसकी पर्याय प्रगट होती है । ज्ञानपर्याय पूर्ण प्रगट (विकसित) हो जाने पर ज्ञानके व्यापारको एक ओरसे दूमरी ओर ले जाने की आवश्यकता नही रहती। इसलिये प्रत्येक मुमुक्षुको यथार्थ भेदविज्ञान प्राप्त करना चाहिये; जिसका फल केवलज्ञान है॥ १८ ॥
पाँच इन्द्रियोंके नाम और उनका क्रम स्पर्शनरसनाघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि ॥१६॥
अर्थ-[ स्पर्शन ] स्पर्शन [ रसना ] रसना [ घ्राण ] नाक I चक्षुः ] चक्षु और [ श्रोत्र ] कान-यह पाँच इन्द्रियाँ है।
टीका (१) यह इन्द्रियाँ भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय यों दोनों प्रकारकी समझना चाहिये । एकेन्द्रिय जीवके पहिली (स्पर्शन) इन्द्रिय, दो इन्द्रिय जीवके पहिली दो क्रमशः होती हैं। इस अध्यायके चौदहवें सूत्र की टीकामे इस सम्बन्धसे सविवरण कहा गया है।
(२) इन पांच भावेन्द्रियोंमें भावोत्रेन्द्रियको अति लाभदायक माना गया है, क्योंकि उस भावेन्द्रियके बलसे जीव सम्यग्ज्ञानी पुरुषका उपदेश सुनकर और तत्पश्चात् विचार करके यथार्थ निर्णय करके हितकी प्राप्ति और अहितका त्याग कर सकता है । जड़ इन्द्रिय तो सुनने में निमित्त मात्र है।
३. (अ)-श्रोत्रेन्द्रिय (कान) का आकार जवकी बीचकी नालीके समान, (ब)-नेत्रका आकार मसूर जैसा, (क)-नाकका आकार तिलके फूल जैसा, (ड)-रसनाका आकार अर्धचन्द्रमा जैसा और (इ)-स्पर्शनेन्द्रियका आकार शरीराकार होता है,-स्पर्शनेन्द्रिय सारे शरीरमें होती है ।। १६ ॥
इन्द्रियों के विषय स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः ॥२०॥ अर्थ-[ स्पर्शरसगंधवर्णशब्दाः ] स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, (रंग)