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मोक्षशास्त्र
२. उपकरण-निवृतिका उपकार करनेवाला पुद्गल समूह उपकरण है । उसके वाह्य और अभ्यंतर दो भेद हैं । जैसे नेयमें सफेद और काला मंडल प्राभ्यन्तर उपकरण है और पलक तथा गट्टा इत्यादि वाह्य उपकरण है । उपकरणका अर्थ निमित्तमात्र समझना चाहिये किन्तु यह नही समझना चाहिये कि वह लाभ करता है। [देखो अर्थप्रकाशिका पृष्ठ २०२-२०३] यह दोनो उपकरण जड़ है ॥१७॥
भावेन्द्रिय का स्वरूप लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् ॥ १८ ॥ अर्थ-[ लब्धि उपयोगी ] लब्धि और उपयोगको [भावेन्द्रियम्] भावेन्द्रिय कहते है।
टीका
१. लब्धि-लब्धिका अर्थ प्राप्ति अथवा लाभ होता है । आत्माके चैतन्यगुणका क्षयोपशम हेतुक विकास लब्धि है । (देखो सूत्र ४५ की टीका)
उपयोग-चैतन्यके व्यापारको उपयोग कहते है । आत्माके चैतन्य गुणका जो क्षयोपशम हेतुक विकास है उसके व्यापारको उपयोग कहते है।
२-आत्मा ज्ञेय पदार्थ के संमुख होकर अपने चैतन्य व्यापारको उस ओर जोड़े सो उपयोग है । उपयोग चैतन्यका परिणमन है। वह किसी अन्य ज्ञेय पदार्थकी ओर लग रहा हो तो, आत्माकी सुनने की शक्ति होने पर भी सुनता नही है । लब्धि और उपयोग दोनोके मिलनेसे ज्ञानको सिद्धि होती है।
३ प्रश्न-उपयोग तो लब्धिरूप भावेन्द्रियका फल ( कार्य ) है, तब फिर उसे भावेन्द्रिय क्यो कहा है ?
उचर-कार्यमें कारणका उपचार करके उपयोगको (उपचारसे) भावेन्द्रिय कहा जाता है। घटाकार परिणमित ज्ञानको घट कहा जाता है, इस न्यायसे लोकमें कार्यको भी कारण माना जाता है । आत्माका लिंग इन्द्रिय ( भावेन्द्रिय ) है, प्रात्मा वह स्व अर्थ है उसमें उपयोग मुख्य है