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मोक्षशास्त्र
उल्टी सुल्टी इन्द्रियाँ किसी जीवके नहीं होती हैं । जैसे केवल स्पर्शन और चक्षु, यह दो इन्द्रियां किसी जीवके नहीं हो सकती किन्तु यदि दो होगी तो वे स्पर्शन और रसना ही होगी । सैनी जीवोंके मनबल होता है इसलिये उनके दश प्रारण होते हैं ॥ १४ ॥
इन्द्रियोंकी संख्या पंचेन्द्रियाणि ॥ १५ ॥
अर्थ = [ इन्द्रियाणि ] इन्द्रियां [ पंच ] पाँच हैं ।
टीका
Agenda
१ इन्द्रियाँ पाँच हैं । अधिक नही । 'इन्द्र' अर्थात् श्रात्माकी अर्थात् संसारी जीवकी पहिचान करानेवाला जो चिह्न है उसे इन्द्रिय कहते हैं । प्रत्येक द्रव्येन्द्रिय अपने अपने विषयका ज्ञान उत्पन्न होनेमे निमित्त कारण है । कोई एक इन्द्रिय किसी दूसरी इन्द्रियके आधीन नहीं है । भिन्न भिन्न एक एक इन्द्रिय परकी अपेक्षासे रहित है अर्थात् अहमिन्द्रकी भांति प्रत्येक अपने अपने श्राधीन है ऐसा ऐश्वर्य धारण करती हैं ।
प्रश्न- -वचन, हाथ, पैर, गुदा, और लिंगको भी इन्द्रिय क्यों नहीं कहा ?
magpangka
उत्तर - यहाँ उपयोगका प्रकरण है । उपयोगमें स्पर्शादि इंद्रियाँ निमित्त है इसलिये उन्हें इन्द्रिय मानना ठीक है । वचन इत्यादि उपयोगमें निमित्त नही हैं वे मात्र 'जड़' क्रियाके साधन हैं, और यदि क्रियाके कारण होनेसे उन्हे इन्द्रिय कहा जाय तो मस्तक इत्यादि सभी प्रांगोपांग (क्रिया के साधन ) हैं, उन्हें भी इंद्रिय कहना चाहिये । इसलिये यह मानना ठीक है कि जो उपयोगमें निमित्त कारण है वह इंद्रियका लक्षण है ।
२- जड़ इंद्रियाँ इद्रियज्ञानमें निमित्त मात्र है किन्तु ज्ञान उन इंद्रियोंसे नही होता, ज्ञान तो आत्मा स्वयं स्वतः करता है । क्षायोपशमिकज्ञानका स्वरूप ऐसा है कि वह ज्ञान जिस समय जिसप्रकारका उपयोग करनेके योग्य होता है तब उसके योग्य इंद्रियादि वाह्य निमित्त स्वयं स्वतः