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अध्याय २ सूत्र १३-१४
२५५ ४-स्थावरजीव उसी भवमें सम्यग्दर्शन प्राप्त करने योग्य नहीं होते क्योंकि संज्ञी पर्याप्तक जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त करने योग्य होते हैं।
५-पृथिवीकायिकका शरीर मसूरके दानेके आकारका लंब गोल, जलकायिकका शरीर पानीकी बून्दके आकारका गोल, अग्निकायिकका शरीर सुइयोंके समूहके आकारका और वायुकायिकका शरीर ध्वजाके आकार का लंबा-तिरछा होता है। वनस्पतिकायिक और त्रसजीवोंके शरीर अनेक भिन्न भिन्न आकारके होते हैं। ( गोमट्टसार जीवकांड गाथा २०१ ) ॥ १३ ॥
त्रस जीवोंके भेद द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ॥१४॥ . अर्थ-[दि इन्द्रिय प्रादयः ] दो इन्द्रिय से लेकर अर्थात् दो इन्द्रिय तीन इन्द्रिय चार इन्द्रिय और पाँच इन्द्रिय जीव [ त्रसाः ] प्रस कहलाते है।
टीका १-एकेन्द्रिय जीव स्थावर है और उनके एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है। उनके स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु और श्वासोच्छवास यह चार प्राण होते हैं।
२-दो इन्द्रिय जीवके स्पर्शन और रसना यह दो इन्द्रियाँ ही होती है। उनके रसना और वचनबल बढ़नेसे कुल छह प्राण होते है।
३-तीन इन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना और घ्राण यह तीन इन्द्रियाँ ही होती हैं । उनके घ्राण इन्द्रिय अधिक होनेसे कुल सात प्रारण होते हैं।
४-चार इन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियां होती हैं। उनके चक्षु इन्द्रिय अधिक होनेसे कुल आठ प्राण होते हैं।
५-पचेन्द्रिय जीवोके स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र यह पांच इन्द्रिया होती हैं । उनके कर्ण इन्द्रिय अधिक होनेसे कुल ६ प्राण भरी नियोंके होते है । इन पांच इन्द्रियोंका ऊपर जो क्रम बताया है उससे