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मोक्षशास्त्र
होना ही आकार है, पदार्थोके भेदाभेदके लिये होनेवाले निश्चयात्मक बोध को ही आकार कहते हैं अर्थात् पदार्थोंका जानना ही आकार है, और वह ज्ञानका स्वरूप है |
अर्थ-स्व और पर विषय; विकल्प व्यवसाय; अर्थविकल्प = स्व- पर व्यवसायात्मकज्ञान । इस ज्ञानको प्रमाण कहते है । ( पं. देवकीनन्दन कृत पंचाध्यायी टीका भाग १ श्लोक ६६६ का फुटनोट )
आकार सम्बन्धी विशेष स्पष्टीकरण
ज्ञान अमूर्तिक आत्माका गुरण है, उसमें ज्ञेय पदार्थका आकार नहीं उतरता । मात्र विशेष पदार्थ उसमें भासने लगते है - यही उसकी आकृति मानने का मतलब है । सारांश-ज्ञानमे पर पदार्थको आकृति वास्तवमें नही मानी जा सकती, किन्तु ज्ञान - ज्ञेय सम्बन्धके कारण ज्ञेयका आकृति धर्म उपचार नयसे ज्ञानमें कल्पित किया जाता है; इस उपचारका फलितार्थ इतना ही समझना चाहिए कि पदार्थोका विशेष आकार ( - स्वरूप ) निश्चय करानेवाले जो चैतन्य परिणाम है वे ज्ञान कहलाते हैं, किन्तु साकारका यह अर्थ नही है कि उस पदार्थके विशेष आकार तुल्य ज्ञान स्वयं हो जाता है |
(तत्त्वार्थसार पृष्ठ ५४ )
४. दर्शन और ज्ञान के बीचका भेद
अंतर्मुख चित्प्रकाशको दर्शन और बहिर्मुख चित्प्रकाशको ज्ञान कहा जाता है । सामान्य - विशेषात्मक बाह्य पदार्थको ग्रहण करनेवाला ज्ञान है और सामान्य विशेषात्मक श्रात्मस्वरूपको ग्रहण करनेवाला दर्शन है |
शंका- इसप्रकार दर्शन और ज्ञानका स्वरूप माननेसे शास्त्रके इस वचनके साथ विरोध आता है कि- 'वस्तुके सामान्य ग्रहरणको दर्शन कहते हैं' ।
समाधान- - समस्त बाह्य पदार्थोके साथ साधारणता होनेसे उस