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अध्याय २ सूत्र
२३६ द्रव्यसंग्रहकी ४३ वी गाथाकी टीकामे 'सामान्य' शब्द प्रयुक्त हुआ है, उसका अर्थ 'आत्मा' है सामान्य ग्रहणका मतलब है आत्मग्रहण; और पारमग्रहण दर्शन है।
३. साकार और निराकार शानको साकार और दर्शनको निराकार कहा जाता है। उसमेंसे 'आकार' का अर्थ लम्बाई चौड़ाई और 'मोटाई नही है, किन्तु जिसप्रकार का पदार्थ होता है उसीप्रकार ज्ञानमें ज्ञात हो उसे आकार कहते हैं। प्रमूतित्व प्रात्माका गुण होनेसे ज्ञान स्वयं वास्तवमें अमूर्त है । जो स्वयं प्रमूर्त हो और फिर द्रव्य न हो, मात्र गुण हो उसका अपना पृथक् आकार नहीं हो सकता । अपने अपने आश्रयभूत द्रव्यका जो आकार होता है वही माकार गुणोंका होता है। ज्ञान गुणका आधार आत्मद्रव्य है इसलिये आत्माका नाकार ही ज्ञानका आकार है। आत्मा चाहे जिस प्राकारके पदार्थको जाने तथापि अात्माका आकार तो ( समुद्घातको छोड़कर ) शरीराकार रहता है, इसलिये वास्तविकतया ज्ञान ज्ञेयपदार्थके आकाररूप नही होता किन्तु आत्माके आकाररूप होता है। जैसा ज्ञेय पदार्थ होता है वैसा ही ज्ञान जान लेता है इसलिये ज्ञानका आकार कहा जाता है (तत्त्वार्थसार पृष्ठ ३०८-३०९ ) दर्शन एक पदार्थसे दूसरे पदार्थको पृथक् नहीं करता, इसलिये उसे निराकार कहा जाता है।
पंचाध्यायी भाग २ के श्लोक ३९१ में आकारका अर्थ निम्नप्रकार कहा गया है:
आकारोर्थविकल्पः स्यादर्थः स्वपरगोचरः।
सोपयोगो विकल्पो वा ज्ञानस्यैतद्धि लक्षणम् ।
अर्थ- अर्थ, विकल्पको आकार कहते है, स्व-पर पदार्थको अर्थ कहा जाता है, उपयोगावस्थाको विकल्प कहते हैं। और यही ज्ञानका लक्षण है।
भावार्थ-आत्मा अथवा अन्य पदार्थका उपयोगात्मक भेदविज्ञान