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मोक्षशास्त्र
विस्तार करके बतानेवाला । साधारण मनुष्य विशेषसे भलीभाँति निर्णय कर सकते है ।
( २ ) दर्शन शब्द के यहाँ लागू होनेवाला अर्थ
शास्त्रोंमें एक ही शब्दका कहीं कोई अर्थ होता है और कहीं कोई | 'दर्शन' शब्दके भी अनेक अर्थ हैं ।
(१) अध्याय १ सूत्र १ - २ में मोक्षमार्ग सम्बन्धी कथन करते हुये 'सम्यग्दर्शन' शब्द कहा है; वहाँ दर्शन शब्दका अर्थ श्रद्धा है । ( २ ) उपयोग के वर्णनमें 'दर्शन' शब्दका अर्थ वस्तुका सामान्य ग्रहरणमात्र है । श्रीर (३) इन्द्रियके वर्णनमे 'दर्शन' शब्दका अर्थ नेत्रोंके द्वारा देखना मात्र है । इन तीन अर्थो में से यहाँ प्रस्तुत सूत्रमे दूसरा अर्थ लागू होता है ।
( मोक्षमार्ग प्रकाशक )
दर्शनोपयोग — किसी भी पदार्थको जाननेकी योग्यता ( लब्धि ) होने पर उस पदार्थ की ओर सन्मुखता, प्रवृत्ति अथवा दूसरे पदार्थों की ओर से हटकर विवक्षित पदार्थकी ओर उत्सुकता प्रगट होती है सो दर्शन है । वह उत्सुकता चेतना में ही होती है । जबतक विवक्षित पदार्थको थोड़ा भी नही जाना जाता तबतकके चेतनाके व्यापारको 'दर्शनोपयोग' कहा जाता है । जैसे एक मनुष्य का उपयोग भोजन करनेमें लगा हुआ है और उसे एकदम इच्छा हुई कि बाहर मुझे कोई बुलाता तो नही है ? मैं यह जान लूं । अथवा किसीकी आवाज कानमे आने पर उसका उपयोग भोजनसे हट कर शब्दकी श्रोर लग जाता है इसमें चेतनाके उपयोगका भोजनसे हटना और शब्दकी ओर लगना किन्तु जबतक शब्दकी ओरका कोई भी ज्ञान नहीं होता तबतकका व्यापार 'दर्शनोपयोग' है ।
पूर्व विषय से हटना और बाद के विषय की ओर उत्सुक होना ज्ञान की पर्याय नहीं है इसलिये उस चेतना पर्याय को 'दर्शनोपयोग' कहा जाता है ।
श्रात्माके उपयोग का पदार्थोन्मुख होना दर्शन है ।