________________
२३२
मोक्षशास्त्र गया है, कुज्ञानको यहाँ नहीं लिया है, कुज्ञानको क्षायोपशमिकभावमें लिया है ॥६॥
औदयिकभाव की विशेष चर्चा देखो-पंचाध्यायी भा० २ गा. ९७७ से १०५२-सि० शास्त्री पं० फूलचंद्रजी कृत टीका पृ० ३२०-२१, ३०७ से ३२१; तथा पं० देवकीनन्दनजी टीका गा० ९८० से १०५५, पत्र ४१५-४४४।]
पारिणामिकभावके तीन भेद जीवभव्याभव्यत्वानि च ॥७॥ अर्थ-[जीवभव्याभव्यत्वानि च ] जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व-इसप्रकार पारिणामिकभाव के तीन भेद है ।
टीका १ सूत्रके अंतमें 'च' शब्दसे अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व आदि सामान्य गुणोंका भी ग्रहण होता है ।
भव्यत्व-मोक्ष प्राप्त करने योग्य जीवके 'भव्यत्व' होता है ।
अभव्यत्व-जो जीव कभी भी मोक्ष प्राप्त करनेके योग्य नहीं होते उनके 'अभव्यत्व' होता है ।
भव्यत्व और अभव्यत्व गुण है, वे दोनों अनुजीवी गुण हैं, कर्मके सद्भाव या अभाव की अपेक्षासे वे नाम नहीं दिये गये है।
जीवत्व-चैतन्यत्व, जीवनत्व, ज्ञानादि गुणयुक्त रहनासो जीवन है ।
पारिणामिक भावका अर्थ-कर्मोदयकी अपेक्षाके विना आत्मामें जो गुण मूलतः स्वभावमात्र ही हों उन्हें 'पारिणामिक' कहते हैं । अथवा
"द्रव्यात्म लाभमात्र हेतुकः परिणामः" अर्थ-जो वस्तुके निजस्वरूपको प्राप्ति मात्र में ही हेतु हो सो पारिणामिक है ।
(सर्वार्थसिद्धि टीका )