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बढ़ेगा तसे २ अशुद्धता ( - शुभाशुभका ) प्रभाव होता जायगा और क्रमशः शुभभावका अभाव करके शुक्लव्यान द्वारा केवलज्ञान प्रगट करेगा ऐसा दिखानेके लिये व्यवहार मोक्षमार्गको परम्परा ( निमित्त ) कारण कहा गया है । यह निमित्त दिखाने के प्रयोजनसे व्यवहारनयका कथन है ।
(२) शुभभाव ज्ञानीको भी आस्रव (बन्धके कारण ) होनेसे वे निश्चयनयसे परम्परा भी मोक्षका कारण हो सकते नहीं श्री कुन्दकुन्दाचार्य कृत द्वादशानुप्रेक्षा गाथा ५६ मे कहा है कि कर्मोंका आस्रव करनेवाली क्रियासे परम्परा भी निर्वाण प्राप्त हो सकते नहीं; इसलिये संसार भ्रमणके कारणरूप आस्रवको निंद्य जानो || ५ ||
(३) पंचास्तिकाय गाथा १६७ मे श्री जयसेनाचार्यंने कहा है कि"श्री अहंतादिमें भी राग छोड़ने योग्य है" पीछे गाथा १६८ मे कहा है कि, धर्मीजीवका राग भी ( निश्चयनयसे) सर्व अनर्थका परम्परा कारण है ।
( ४ ) इस विषय मे स्पष्टीकरण श्री नियमसारजी गाथा ६० ( गुजराती अनुवाद ) पृष्ठ ११७ फुटनोट न० ३ मे कहा है कि "शुभोपयोगरूप व्यवहार व्रत शुद्धोपयोगका हेतु है और शुद्धोपयोग मोक्षका हेतु है ऐसी गिन करके यहाँ उपचारसे व्यवहारव्रतको मोक्षके परम्परा हेतु कहा है, वास्तवमे तो शुभोपयोगी मुनिके योग शुद्ध परिणति ही ( शुद्धात्म द्रव्यको श्रालम्बन करती होनेसे ) विशेष शुद्धिरूप शुद्धोपयोग हेतु होती है, इसप्रकार इस शुद्धपरिणतिमे स्थित जो मोक्षके परम्परा हेतुपनाका आरोप उसकी साथ रहा हुआ शुभोपयोग में करके व्यवहारव्रतको मोक्षका परम्परा हेतु कहने मे आता है । परन्तु जहाँ शुद्धपरिणति ही न हो वहाँ रहा हुआ शुभोपयोगमें मोक्षके परम्परा हेतुपनेका आरोप भी कर सकते नही, कारण कि जहाँ मोक्षका यथार्थ हेतु प्रगट हुआ ही नही - विद्यमान ही नही वहाँ शुभोपयोगमे आरोप किसका करना ?"
(५) और पंचास्तिकाय गाथा १५६ ( गुज० अनु० ) पृष्ठ २३३