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________________ १८८ मोक्षशास्त्र का निषेध करना कैसे संभव है और यदि वहाँ निषेध संभव है तो श्रव्याप्ति दोष आ जायगा । उत्तर- - निम्नदशा में सात तत्त्वोंके विकल्प में उपयोग लगाकर प्रतीतिको दृढ़ किया तथा उपयोगको विषयादिसे छुड़ाकर रागादिक कम किये, अब उस कार्यके सिद्ध होने पर उन्ही कारणों का निषेध करते है । क्योकि जहाँ प्रतीति भी दृढ होगई तथा रागादि भी दूर होगये वहाँ अब उपयोगको घुमानेका खेद क्यों किया जाय ? इसलिये वहाँ इन विकल्पोंका निषेध किया है | और फिर सम्यक्त्वका लक्षण तो प्रतीति ही है, उसका ( उस प्रतीतिका) वहाँ निषेध तो किया नही है । यदि प्रतीति छुड़ाई होती तो उस लक्षणका निषेध किया कहलाता, किंतु ऐसा तो है नही । तत्त्वोंकी प्रतीति वहाँ भी स्थिर बनी रहती है इसलिये यहाँ अव्याप्ति दोष नही आता । (४) प्रश्न — छद्मस्थ के प्रतीति-अप्रतीति कहना संभवित है, इसलिये वहां सात तत्त्वोंकी प्रतीतिको सम्यक्त्वका लक्षरण कहा है, जिसे हम मानते हैं किंतु केवली और सिद्ध भगवानको तो सबका ज्ञातृत्व समानरूपसे है इसलिये वहाँ सात तत्त्वोंकी प्रतीति कहना संभवित नही होती, और उनके सम्यक्त्वगुण तो होता ही है, इसलिये वहाँ इस लक्षण में अव्याप्ति दोष आता । उत्तर——जैसे छद्मस्थको श्रुतज्ञानके अनुसार प्रतीति होती है उसी प्रकार केवली और सिद्धभगवान्‌को केवलज्ञानके अनुसार ही प्रतीति होती है । जिन सात तत्त्वोंका स्वरूप पहिले निर्णीत किया था वही अब केवलज्ञानके द्वारा जाना है इसलिये वहाँ प्रतीतिमें परम श्रवगाढत्व हुआ इसीलिये वहाँ परमावगाढ़ सम्यक्त्व कहा है । किन्तु पहिले जो श्रद्धान किया था उसे यदि झूठ जाना हो तो वहां प्रप्रतीति होती, किंतु जैसे सात तत्त्वों का श्रद्धान छद्मस्थको हुआ था वैसा ही केवली, सिद्ध भगवानको भी होता है, इसलिये ज्ञानादिकी होनाधिकता होने पर भी तियंचादिक और केवली सिद्ध भगवानके सम्यक्त्वगुरण तो समान ही कहा है । और पूर्वावस्थामें वह यह मानता था कि- 'संवर- निर्जराके द्वारा मोक्षका उपाय करना चाहिए' और अब मुक्तावस्था होने पर यह मानने लगा कि - 'संवर- निर्जराके द्वारा
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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