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________________ मोक्षशास्त्र अभावका उपाय करता है; इसीप्रकार तुच्छज्ञानी मोक्षादिके नाम नहीं जानता फिर भी सर्वथा सुखरूप मोक्षअवस्थाका श्रद्धान करके उसके लिए भाविबन्धनके कारणरूप रागादि आश्रवभावके त्यागरूप संवरको करना चाहता है, तथा जो संसार-दुःखके कारण हैं उनकी शुद्ध भावसे निर्जरा करना चाहता है। इसप्रकार उसे प्राश्रवादिका श्रद्धान है। इसीप्रकार उसे भी सात तत्त्वोंका श्रद्धान होता है यदि उसे ऐसा श्रद्धान न हो तो रागादिको छोड़कर शुद्धभाव करनेकी इच्छा नहीं हो सकती । सो ही यहाँ कहने में आता है। ____ यदि जीवकी जातिका न जाने-स्वपरको न पहिचाने तो वह परमें रागादि क्यों न करे ? यदि रागादिको न पहिचाने तो वह उनका त्याग क्यों करना चाहेगा? और रागादि ही पाश्रव है। तथा रागादिका फल बुरा है, यह न जाने तो वह रागादिको क्यों छोड़ना चाहेगा ? रागादिका फल ही बन्ध है । यदि रागादि रहित परिणामोको पहिचानेगा तो तदुरूप होना चाहेगा । रागादि रहित परिणामका नाम ही संवर है । और पूर्व संसारावस्थाका जो कारण विभावभाव है उसकी हानिको वह पहिचानता है और तदर्थ वह शुद्ध भाव करना चाहता है। पूर्व संसारावस्थाका कारण विभावभाव है, और उसकी हानि होना ही निर्जरा है। यदि संसारावस्थाके अभावको न पहिचाने तो वह संवर निर्जरारूप प्रवृत्ति क्यों करे ? और संसारावस्थाका प्रभाव ही मोक्ष है इसप्रकार सातों तत्त्वोंका श्रद्धान होते ही रागादिको छोड़कर शुद्धभावरूप होनेकी इच्छा उत्पन्न होती है। यदि इनमेसे एक भी तत्त्वका श्रद्धान न हो तो ऐसी इच्छा नहो। ऐसी इच्छा उन तुच्छज्ञानी तिर्यंचादिक सम्यक्दृष्टियोंके अवश्य होती है, इसलिये यह निश्चय समझना चाहिए कि उनके सात तत्त्वोंका श्रद्धान होता है । यद्यपि ज्ञानावरणका क्षयोपशम अल्प होनेसे उन्हें विशेषरूपसे तत्त्वोंका ज्ञान नहीं होता, फिर भी मिथ्यादर्शनके उपशमादिसे सामान्यतया तत्त्वश्रद्धानकी शक्ति प्रगट होती है । इसप्रकार इस लक्षणमें अव्याप्ति दोष नही आता। (२) प्रश्न-जिस समय सम्यग्दृष्टि जीव विषय कार्योंमें प्रवृत्ति
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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