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अध्याय १ परिशिष्ट २
सम्यग्दर्शन ही शान्तिका उपाय है।
अनादिकालसे श्रात्माके अखण्ड रसको सम्यक्दर्शनके द्वारा नहीं जाना है इसलिये जीव परमें और विकल्पमें रस मान रहा है । किन्तु मैं अखण्ड एकरूप स्वभाव हूँ उसीमे मेरा रस है, परमें कही मेरा रस नही है, इस प्रकार स्वभाव दृष्टिके बलसे एकबार सबको नीरस बनादे ! तुझे सहजानन्दस्वरूपके अमृत रसकी अपूर्व शान्तिका अनुभव प्रगट होगा । उसका उपाय सम्यग्दर्शन ही है ।
संसारका अभाव सम्यग्दर्शन से ही होता है
अनन्तकालसे अनन्तजीव संसारमे परिभ्रमण कर रहे हैं और अनंत कालमें अनन्तजीव सम्यग्दर्शनके द्वारा पूर्ण स्वरूपकी प्रतीति करके मोक्षको प्राप्त हुए है, जीवोंने संसार पक्ष तो अनादिकाल से ग्रहण किया है किन्तु सिद्धों का पक्ष कभी ग्रहण नही किया । अब सिद्धोंका पक्ष ग्रहण करके अपने सिद्ध स्वरूपको जानकर संसारका अभाव करनेका अवसर आया है,....... और उसका उपाय एकमात्र सम्यग्दर्शन ही है
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