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मोक्षशास्त्र
निश्वय तथा व्यवहार दोनोंको यथावत् जानकर विवेक करता है । यदि निश्चय - व्यवहार दोनोंको न जाने तो ज्ञान प्रसारण ( सम्यक् ) नही होता । यदि व्यवहारका श्राश्रय करे तो दृष्टि मिथ्या सिद्ध होती है और यदि व्यवहारको जाने ही नहीं तो ज्ञान मिथ्या सिद्ध होता है । ज्ञान निश्चयव्यवहारका विवेक करता है तब वह सम्यक् कहलाता है । ओर दृष्टि व्यवहारका आश्रय छोड़कर निश्चयको अंगीकार करे तो वह सम्यक् कहलाती है ।
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सम्यग्दर्शनका विषय क्या है ? मोका परमार्थ कारण क्या है ?
सम्यग्दर्शनके विषयमे मोक्ष पर्याय और द्रव्य ऐसे भेद ही नही है । द्रव्य ही परिपूर्ण है जो कि सम्यग्दर्शनको मान्य है । वन्ध-मोक्ष भी सम्यग्दर्शनको मान्य नही है । बन्ध - मोक्षको पर्याय, साधक दशाके भंग-भेद इत्यादि सबको सम्यक् ज्ञान जानता है ।
सम्यग्दर्शनका विषय परिपूर्ण द्रव्य है, वही मोक्षका परमार्थ कारण है | पंच महाव्रतादि या विकल्पको मोक्षका कारण कहना स्थूल व्यवहार है, और सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्ररूप साधक अवस्थाको मोक्षका कारण कहना भी व्यवहार है, क्योकि उस साधक अवस्थाका भी जव प्रभाव होता है तब मोक्ष दशा प्रगट होती है, अर्थात् वह भी अभावरूप कारण है, इसलिये व्यवहार है । त्रैकालिक अखण्ड वस्तु ही मोक्षका निश्चय कारण है । परमार्थसे वस्तुमे कारण- कार्यके भेद भी नही है, कार्यकारणका भेद भी व्यवहार है । एक अखण्ड वस्तुमे कार्यकारणके भेदके विचारसे विकल्प होता है इसलिये वह भी व्यवहार है, फिर भी व्यवहाररूपसे भी कार्य-कारणके भेद सर्वथा नही ही हो तो मोक्षदशाको प्रगट करनेकी बात भी नही कही जा सकती । अर्थात् अवस्थामें साधकसाध्यके भेद है किन्तु अभेदके आश्रयके समय व्यवहारका आश्रय नही होता, क्योकि व्यवहारके आश्रयमे भेद होता है और भेदके आश्रय में परमार्थअभेदस्वरूप लक्षमे नही आता, इसलिये सम्यग्दर्शनके विपयमे भेद नही होते, एकरूप अभेद वस्तु ही सम्यग्दर्शनका विषय है ।