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मोक्षशास्त्र मुख्यतया सम्यग्दृष्टि शंकादि नहीं करता, इस अपेक्षासे सम्यग्दृष्टिके शंकादिका अभाव कहा है, किन्तु सूक्ष्म शक्तिकी अपेक्षासे भयादिका उदय आठवें आदि गुणस्थान तक होता है इसलिये करणानुयोगमें वहाँ तक सद्भाव कहा है। [ देहलीवाला मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ४३३ ]
सम्यग्दृष्टिके 'निर्भयता' कही है इसका अर्थ यह है कि अनन्तानुबन्धो का कषायके साथ जिसप्रकारका भय होता है उसप्रकारका भय सम्यग्दृष्टि को नहीं होता, अर्थात् अज्ञानदशामें जीव जो यह माम रहा था कि "परवस्तुसे मुझे भय होता है' यह मान्यता सम्यग्दृष्टि हो जाने पर दूर हो जाती है, उसके बाद भी जो भय होता है वह अपने पुरुषार्थकी कमज़ोरीके कारण होता है अर्थात् भयमें अपनी वर्तमान पर्यायका दोष है-परवस्तुका नही, ऐसा वह मानता है।
श्रेणिक राजाको जो भय उत्पन्न हुआ था सो वह अपने चारित्रकी कमजोरीके कारण हुआ था, ऐसी उसकी मान्यता होनेसे सम्यग्दर्शनकी अपेक्षासे वह निर्भय था। चारित्रकी. अपेक्षासे अल्प भय होनेपर उसे आत्मघातका विकल्प हुआ था।
(६) प्रश्न:-क्षायिक लब्धिकी स्थिति रखनेके लिये वीर्यान्तराय कर्मके क्षयकी आवश्यकता होगी, क्योंकि क्षायिक शक्तिके बिना कोई भी क्षायिक लब्धि नही रह सकती। क्या यह मान्यता ठीक है ?
उचर-यह मान्यता ठीक नही है; वीर्यान्तरायके क्षयोपशमके निमित्तसे अनेक प्रकारको क्षायिक पर्यायें प्रगट होती हैं । १-क्षायिक सम्यग्दर्शन (चौथेसे सातवे गुणस्थानमे ),.२-क्षायिक यथाख्यात चारित्र (वारहवे गुणस्थानमे ), ३-शायिक क्षमा ( दशवे गुणस्थानमें ),
* द्रव्य क्रोधको नवमें गुणस्थानके सातवें भागमें व्युच्छित्ति होती है। द्रव्यमानकी नवमें गुणस्थानके आठवें भागमें व्युच्छित्ति होती है। द्रव्यमाया की नवमें गुणस्यान नवमें भागमें व्युच्छित्ति होती है।