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मोक्षशास्त्र
(२) प्रश्न-एक गुण सर्व गुणात्मक है और सर्व गुण एक गुणात्मक है; इसलिये एक गुणके सपूर्ण प्रगट होनेसे अन्य संपूर्ण गुण भी पूर्ण रीतिसे उसीसमय प्रगट होना चाहिये, क्या यह ठीक है ?
उत्तर-यह मान्यता ठीक नहीं है । गुण और गुणी अखंड हैं इस अभेदापेक्षासे गुण अभेद है-किन्तु इसीलिये एक गुण दूसरे सभी गुणरूप है ऐसा नहीं कहा जा सकता; ऐसा कहने पर प्रत्येक द्रव्य एक ही गुणात्मक हो जायगा, किन्तु ऐसा नहीं होता । भेदकी अपेक्षासे प्रत्येक गुण भिन्न, स्वतंत्र, असहाय है, एक गुणमे दूसरे गुणकी नास्ति है, वस्तुका स्वरूप भेदाभेद है-ऐसा न माना जाय तो द्रव्य और गुण सर्वथा अभिन्न हो जायेंगे । एक गुणका दूसरे गुणके साथ निमित्त नैमित्तिक सबध है,-इस अपेक्षासे एक गुरणको दूसरे गुणका सहायक कहा जाता है। [जैसे सम्यग्दर्शन कारण और सम्यग्ज्ञान कार्य है। ]
(३) प्रश्न-प्रात्माके एक गुणका घात होनेमें उस गुणके घातमे निमित्तरूप जो कर्म है उसके अतिरिक्त दूसरे कर्म निमित्तरूप घातक है या नही?
उत्तर-नही।
प्रश्न-अनंतानुबंधी चारित्रमोहनीयकी प्रकृति है इसलिये वह चारित्रके घातमे निमित्त हो सकती है, किन्तु वह सम्यग्दर्शनके घातमें निमित्त कैसे मानी जाती है ?
उत्तर-अनतानुवन्धीके उदयमे युक्त होनेपर क्रोधादिरूप परिणाम होते है किन्तु कही अतत्त्व श्रद्धान नहीं होता, इसलिये वह चारित्रके घात का ही निमित्त होता है, किन्तु सम्यक्त्वके घातमे वह निमित्त नही है, परमाने तो ऐसा ही है, किन्तु अनंतानुवंधोके उदयसे जैसे क्रोधादिक होते हैं वैगे मोधादिक सम्यक्त्व के सद्भावमें नहीं होते,-ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सबंध लिये उपचारसे अनंतानुवधीमें सम्यक्त्वकी घातकता कही जाती है।
[ मोक्षमार्गप्रकाराक पृ० ४४६ देहली। ]