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मोक्षशास्त्र
पूर्ण चैतन्य स्वभावरूपता द्रव्य - गुरण पर्यायमें (वर्तमान पर्यायको गौर करने पर) है, आत्माका यह पहलू निश्चयनयका विषय है । इस पहलूको निश्चय करनेवाले ज्ञानका पहलू 'निश्चयनय' है ।
दूसरा पहलू - वर्तमान पर्यायमें दोष है - विकार है, अल्पज्ञता है यह निश्चय करना चाहिए । यह पहलू व्यवहारनयका विषय है । इसप्रकार दो नयोंके द्वारा आत्माके दोनों पहलुओका निश्चय करनेके बाद पर्यायका आश्रय छोड़ कर अपने त्रिकाल चैतन्य स्वरूपकी ओर उन्मुख होना चाहिए ।
इसप्रकार त्रैकालिक द्रव्यकी ओर उन्मुख होनेपर - वह त्रैकालिक नित्य पहलू होनेसे उसके श्राश्रयसे सम्यग्दर्शन प्रगट होता है ।
यद्यपि निश्चयनय और सम्यग्दर्शन दोनो भिन्न २ गुणोंकी पर्याय हैं तथापि उन दोनोंका विषय एक है अर्थात् उन दोनोंका विषय एक, प्रखण्ड, शुद्ध, बुद्ध, चैतन्यस्वरूप आत्मा है, उसे दूसरे शब्दो में ' त्रैकालिक ज्ञायक स्वरूप' कहा जाता है । सम्यग्दर्शन किसी परद्रव्य, देव, गुरु, शास्त्र अथवा निमित्त, पर्याय, गुरणभेद, या भग इत्यादिको स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उसका विषय उपरोक्त कथनानुसार त्रिकाल ज्ञायकस्वरूप आत्मा है । (१३) निर्विकल्प अनुभवका प्रारम्भ
निर्विकल्प अनुभवका प्रारम्भ चौथे गुणस्थानसे ही होता है, किन्तु इस गुरगस्थानमे वह बहुतकाल के अन्तरसे होता है, और ऊपरके गुणस्थानों मे जल्दी २ होता है । नीचेके और ऊपरके गुणस्थानोंकी निर्विकल्पता में भेद यह है कि परिणामोकी मग्नता ऊपरके गुणस्थानोंमें विशेष है । [ गुजराती मोक्षमार्ग प्रकाशकके साथकी श्री टोडरमलजी कृत रहस्य पूर्ण चिट्ठी पृष्ठ ३४६ ]
(१४)
जब कि सम्यक्त्व पर्याय है तब उसे गुण कैसे कहते हैं ?
प्रश्नः - सम्यग्दर्शन पर्याय है फिर भी कहीं २ उसे सम्यक्त्व गुरण क्यों कहते हैं ?