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मोक्षशास्त्र
भावार्थ:-— विकारको उपेक्षा करने पर शुद्धत्व नवर्तत्त्वोंसे अभिन्न है, इसलिये सूत्रकारने [ तत्त्वार्थ सूत्रमें ] नवतत्त्वोके यथार्थं श्रद्धानको सम्यग्दर्शन कहा है । xxx"
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[ गाथा १८८ ] इस गाथामें 'जीव अजीव आश्रव बन्ध संवर निर्जरा और मोक्ष' इन सात तत्त्वोंके नाम दिये है ।
गाथा १८६ ] " पुण्य और पापके साथ इन सात पदार्थ कहा जाता है, और वे नव पदार्थ भूतार्थके आश्रयसे वास्तविक विषय हैं ।"
तत्त्वोंको नव सम्यग्दर्शनका
भावार्थ:- - "पुण्य और पापके साथ यह सात तत्त्व ही नव पदार्थ कहलाते हैं, और वे नव पदार्थ यथार्थताके आश्रयसे सम्यग्दर्शन के यथार्थ विषय है ।"
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नोट:- यह ध्यान रहे कि यह कथन ज्ञांनकी अपेक्षासे है । दर्शनापेक्षा से सम्यग्दर्शनका विषय अपना अखंड शुद्ध चैतन्यस्वरूप परिपूर्ण आत्मा है, यह बात ऊपर बताई गई है |
(५) "शुद्ध चेतना एक प्रकारकी है क्योकि शुद्धका एक प्रकार है । शुद्ध चेतनामें शुद्धताकी उपलब्धि होती है इसलिये वह शुद्धरूप है और वह ज्ञानरूप है इसलिये वह ज्ञान चेतना है" [ पंचाध्यायी अध्याय २ गाथा १६४ ]
"सभी सम्यग्दृष्टियोंके यह ज्ञानचेतना प्रवाहरूपसे अथवा अखण्ड एकधारारूपसे रहती है । [ पंचाध्यायी अध्याय २ गाथा ८५१ ]
(६) ज्ञेय-ज्ञातृत्वकी यथावत् प्रतीति जिसका लक्षरंग है वह संम्यग्दर्शन पर्याय है । [ प्रवचनसार अध्याय ३ गाथा ४२, श्री अमृतचन्द्राचार्य कृत टीका पृष्ठ ३३५ ]
(७) आत्मासे आत्माको जाननेवाला जीव निश्चयसम्यग्दृष्टि है । [ परमात्मप्रकाश गाथा ८२ ]
(८) 'तत्त्वार्थंश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' [ तत्त्वार्थंसूत्र अध्याय १ सूत्र २]