________________
१८
और व्रतादिकके कदाचित् कार्य कारणानो है तातै व्रतादिकको मोक्षमार्ग कहे, सो कहने मात्र ही हैं"-( मोक्षमार्ग प्रकाशक देहली पृष्ठ ३७२ )
धर्म परिणत जीवको वीतराग भावके साथ जो शुभभावरूप रत्नत्रय (-दर्शनज्ञानचारित्र ) होते है उसे व्यवहारनय द्वारा उपचारसे व्यवहार मोक्षमार्ग कहा है जो कि वह रागभाव होनेसे बन्धमार्ग ही है। ऐसा निर्णय करना चाहिये ।
१२-व्यवहार मोक्षमार्ग वास्तव में बाधक होने पर भी उसका निमित्तपना बतानेके लिये उसे व्यवहार नयसे साधक कहा है, उस कथन ऊपरसे कितनेक ऐसा मानते हैं कि निश्चय मोक्षमार्गसे व्यवहार मोक्षमार्ग विपरीत (-विरुद्ध ) नही है किन्तु दोनो हितकारी हैं, तो उनकी यह समझ (-मान्यता ) झूठ है । इस सम्बन्धमे मो० मा० प्रकाशक देहली पत्र ३६५-६६ में कहा है कि
मोक्षमार्ग दोय नाही। मोक्षमार्गका निरूपण दोय प्रकार है। जहाँ सांचा मोक्षमार्गको मोक्षमार्ग निरूपण सो निश्चय मोक्षमार्ग है । और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो है नाही, परन्तु मोक्षमार्गका निमित्त है, वा सहचारी है, ताकौ उपचार करि मोक्षमार्ग कहिए, सो व्यवहार मोक्षमार्ग है जात निश्चय व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है । सांचा निरूपण सो निश्चय. उपचार निरूपण सो व्यवहार, तातै निरूपण अपेक्षा दो प्रकार मोक्षमार्ग जानना । एक निश्चय मोक्षमार्ग है, एक व्यवहार मोक्षमार्ग है। ऐसे दोय मोक्षमार्ग मानना मिथ्या है । बहुरि निश्चय व्यवहार दोऊनिळू उपादेय माने है, सो भी भ्रम है। जातें निश्चय व्यवहारका स्वरूप तौ परस्पर विरोध लिये है। जाते समयसार विषै ऐसा कह्या है
___ 'व्यवहारोऽभूयत्थो, भूयत्थो देसिदोसुद्धरणो' याका अर्थ-व्यवहार अभूतार्थ है। सत्यस्वरूपको न निरूपे है, किसी अपेक्षा उपचार करि
-
*नमित्तिक निमित्तपना।