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अन्यथा निरूपे है बहुरि शुद्धमय जो निश्चय है, सो भूतार्थ है । जैसा वस्तुका स्वरूप है तैसा निरूप है, ऐसे इन दोऊनिका ( दोनों नयका ) स्वरूप तो विरुद्धता लिए है ।
( मो० मा० प्रकाशक पृष्ठ ३६६ )
प्रवचनसार गाथा २७३-७४ में तथा टीकामें भी कहा है कि 'मोक्ष तत्त्वका साधनतत्त्व 'शुद्ध ही है' और वही चारों अनुयोगोंका सार है ?
१३- निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रसे मिथ्यादर्शन ज्ञानचारित्र तो विरुद्ध है ही, परन्तु निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रसे व्यवहारा सम्यग्दर्शन -: - ज्ञान - चारित्रका स्वरूप तथा फल परस्पर विरुद्ध है इसलिये ऐसा निर्णय करनेके लिये कुछ आधार निम्नोक्त दिये जाते हैं
१- श्री नियमसारजी ( गुजराती अनुवादित ) पत्र नं० १४६ निश्चय प्रतिक्रमण अधिकारको गाथा, ७७ से ८१ की भूमिका,
२- नियमसार गाथा ६१ पत्र १७३ कलश नं० १२२.
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६२ 19
१७५ टीका
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१०
११
१२
१३
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१०६, २१५ कलश - १५५ नीचेकी टोका,
१२१, २४४ टीका,
१२३ "
२४६ टीका,
१२८" 32
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गाथा ११ टोका पत्र नं० १२-१३
४-५
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31 ७
१३ को भूमिका तथा टीका पत्र, १४- १५,
७६ टोका, पत्र, ८८-८
६२
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१५९-६० टीका तथा फुटनोट,
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२८२ गाथा, १४१ की भूमिका,
प्रवचनसारजी ( पाटनी ग्रन्थमाला ) में देखो:
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