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मोक्षशास्त्र
(३) श्रद्धागुणकी मुख्यतासे निश्चय सम्यग्दर्शनकी व्याख्या
(१) श्रद्धागुणकी जिस अवस्थाके प्रगट होनेसे अपने शुद्ध आत्माका प्रतिभास हो सो सम्यग्दर्शन है।
(२) सर्वज्ञ भगवानकी वाणीमें जैसा पूर्ण प्रात्माका स्वरूप कहा गया है वैसा श्रद्धान करना सो निश्चय सम्यग्दर्शन है।
[ निश्चय सम्यग्दर्शन-निमित्तको, अपूर्ण या विकारी पर्यायको, भंगभेदको या गुणभेदको स्वीकार नही करता-(भेदरूप) लक्षमे नही लेता।]
नोट:-बहुतसे लोग यह मानते हैं कि मात्र एक सर्वव्यापक प्रात्मा है और वह आत्मा कूटस्थमात्र है, किन्तु उनके कथनानुसार चैतन्यमात्र आत्माको मानना सम्यग्दर्शन नही है।
(३) स्वरूपका श्रद्धान । (४) आत्म श्रद्धान [ पुरुषार्थसिद्धि उपाय श्लोक २१६ ] (५) स्वरूपकी यथार्थ प्रतीति-श्रद्धान [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ
४७१-सस्ती ग्रन्थमाला देहलीसे प्रकाशित ] (६) परसे भिन्न अपने आत्माकी श्रद्धा रुचि [ समयसार कलश
६, छहढाला तीसरी ढाल, छन्द २।] नोट:-यहाँ परसे 'भिन्न' शब्द सूचित करता है कि सम्यग्दर्शनको परवस्तु, निमित्त, अशुद्धपर्याय, अपूर्ण शुद्धपर्याय या भगभेद आदि कुछ भी स्वीकार्य नहीं है। सम्यग्दर्शनका विषय [ लक्ष्य ] पूर्ण ज्ञानधन त्रैकालिक प्रात्मा है। [ पर्यायकी अपूर्णता इत्यादि सम्यग्ज्ञानका विषय है।] (७) विशुद्धज्ञान-दर्शनस्वभावरूप निज परमात्माकी रुचि सम्य
ग्दर्शन है [ जयसेनाचार्यकृत टीका-हिन्दी समयसार पृष्ठ ८]
नोट:-यहाँ 'निज' शब्द है, वह अनेक प्रात्मा है उनसे अपनी भिन्नता बतलाता है।