________________
मोक्षशास्त्र परन्तु उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि-धर्म किसी समय तो व्यवहारनय (-अभूतार्थनय ) के आश्रयसे होता है और किसी समय निश्चयनय (-भूतार्थनय ) के आश्रयसे होता है, परन्तु धर्म तो हमेशा निश्चयनय अर्थात् भूतार्थनयके ही आश्रयसे होता है (-अर्थात् भूतार्थनयके अखण्ड विषयरूप निजशुद्धात्माके आश्रयसे ही धर्म होता है। ऐसा न्याय-पु० सि० उपायके ५ वें श्लोकमें तथा श्री कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रन्थ गा० ३१११२ के भावार्थमें दिया गया है । इसलिये इस श्लोक नं० २२५ का अन्य प्रकार अर्थ करना ठीक नहीं है।
इसप्रकार श्री उमास्वामि विरचित मोक्षशास्त्र के प्रथम अध्यायकी
गुजराती टीकाका हिन्दी अनुवाद समाप्त हुआ।