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मोक्षशास्त्र २-कुछ लोगोंको सर्वज्ञके अस्तित्व-नास्तित्वका-संशय होता है । ३-~-कुछ लोगोंको परलोकके अस्तित्व नास्तित्वका संशय होता है।
४-कुछ लोगोंको अनध्यवसाय (अनिर्णय) होता है । वे कहते हैं कि-हेतुवादरूप तर्कशास्त्र है इसलिये उससे कुछ निर्णय नही हो सकता ? और जो बागम है सो वे भिन्न २ प्रकारसे वस्तुका स्वरूप बतलाते हैं, कोई कुछ कहता है और कोई कुछ, इसलिये उनकी परस्पर बात नहीं मिलती।
५-कुछ लोगोंको ऐसा अनध्यवसाय होता है कि कोई ज्ञाता सर्वज्ञ अथवा कोई मुनि या ज्ञानी प्रत्यक्ष दिखाई नही देता कि जिसके वचनोंको हम प्रमाण मान सकें, और धर्मका स्वरूप अति सूक्ष्म है इसलिये कैसे निर्णय हो सकता है ? इसलिये “महाजनो.येन गताः स पन्थाः" अर्थात् बडे प्रादमी जिस मार्गसे जाते हैं उसी मार्ग पर हमे चलना चाहिए।
६-कुछ लोग वीतराग धर्मका लौकिक वादोंके साथ समन्वय करते हैं । वे शुभभावोंके वर्णनमें कुछ समानता देखकर जगतमें चलनेवाली सभी धार्मिक मान्यताओंको एक मान बैठते है । ( यह विपर्यय है)।
७-कुछ लोग यह मानते हैं कि मंदकषायसे धर्म (शुद्धता) होती है, ( यह भी विपर्यय है)।
८-कुछ लोग ईश्वरके स्वरूपको इसप्रकार विपर्यय मानते हैं किइस जगतको किसी ईश्वरने उत्पन्न किया है और वह उसका नियामक है ।
इसप्रकार सशय विपर्यय और अनध्यवसाय अनेक प्रकारसे मिथ्याज्ञानमें होते हैं, इसलिये सत् और असत्का यथार्थ भेद यथार्थ समझकर, स्वच्छंदतापूर्वक की जानेवाली कल्पनाओ और उन्मत्तताको दूर करनेके लिए यह सूत्र कहते है। [ मिथ्यात्वको उन्मत्तता कहा है क्योकि मिथ्यात्व से अनन्त पापोंका बंध होता है जिसका ध्यान जगतको नही है ] ॥३२॥