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मोक्षशास्त्र करने पर जो एक परमाणुमात्र होता है सो सर्वावधिका विषय है, उसका अनन्तवा भाग ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञानका विषय है और उसका अनन्तवाँ भाग विपुलमतिमनःपर्ययज्ञानका विषय है। ( सर्वार्थ सिद्धि पृष्ठ ४७३ )
सूत्र २७-२८ का सिद्धान्त ___ अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञानका विषय रूपी है, ऐसा यहां कहा गया है । अध्याय दो सूत्र एकमें आत्माके पांच भाव कहे हैं, उनमें से औदयिक, औपशमिक तथा क्षायोपशमिक ये तीन भाव इस ज्ञानके विषय हैं, ऐसा २७ वें सूत्रमे कहा है, इससे निश्चय होता है कि परमार्थतः यह तीन भाव रूपी हैं, अर्थात् वे अरूपी आत्माका स्वरूप नही हैं । क्योंकि आत्मामेसे वे भाव दूर हो सकते हैं, और जो दूर हो सकते है वे परमार्थतः आत्माके नही हो सकते । 'पी' की व्याख्या अध्याय पाँचके सूत्र पाँचवेंमे दी है। वहाँ पुद्गल 'रूपी' है-ऐसा कहा है और पुद्गल स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णवाले है, यह अध्याय पाँचके २३ सूत्रमे कहा है। श्रीसमयसारकी गाथा ५० से ६८ तथा २०३ में यह कहा है कि वर्णादिसे गुणस्थानतकके भाव पुदुगल द्रव्यके परिणाम होनेसे जीवकी अनुभूतिसे भिन्न हैं, इसलिये वे जीव नही है। वही सिद्धान्त इस शास्त्रमें उपरोक्त संक्षिप्त सूत्रोके द्वारा प्रतिपादन किया गया है।
___ अध्याय २ सूत्र १ में उन भावोको व्यवहारसे जीवका कहा है, यदि वे वास्तवमै जीवके होते तो कभी जीवसे अलग न होते किंतु वे अलग किये जा सकते हैं इसलिये वे जीवस्वरूप या जीवके निजभाव नही हैं ॥२८॥
केवलज्ञानका विषय सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ॥२६॥ अर्थ:-[फेवलस्य] केवलज्ञानका विषय संबंध [सर्वद्रव्य-पर्यायेषु] सर्व द्रव्य और उनकी सर्व पर्यायें है, अर्थात् केवलज्ञान एक ही साथ सभी पदार्थोंको और उनकी सभी पर्योको जानता है।