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मोक्षशास्त्र
उत्कृष्ट श्रवधिज्ञानका क्षेत्र असंख्यात लोक प्रमाण तक है; ओर मन:पर्ययज्ञानका ढाई द्वीप मनुष्य क्षेत्र है । यह क्षेत्रापेक्षा से भेद है ।
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स्वामी तथा विषयके भेदसे विशुद्धिमें अन्तर जाना जा सकता है, अवधिज्ञानका विषय परमाणु पर्यन्त रूपी पदार्थ है, और मन:पर्ययका विषय मनोगत विकल्प है ।
विषयका भेद सूत्र २७-२८ की टीकामें दिया गया है; तथा सूत्र २२ को टीकामे श्रवधिज्ञानका और २३ की टीकामें मन:पर्ययज्ञानका विषय दिया गया है, उस परसे यह भेद समझ लेना चाहिए ॥ २५ ॥ मति श्रुतज्ञानका विषय----
मतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥ २६ ॥
अर्थ:-- [ मतिश्रुतयोः ] मतिज्ञान और श्रुतज्ञानका [ निबंध: ] विषय सम्बन्ध [ असर्व पर्यायेषु ] कुछ ( न कि सर्व ) पर्यायोसे युक्त ॥ द्रव्येषु ] जीव, - पुद्गलादि सर्व द्रव्योंमें हैं ।
टीका
मतिज्ञान और श्रुतज्ञान सभी रूपी-अरूपी द्रव्योंको जानते हैं, किन्तु उनकी सभी पर्यायोंको नही जानते, उनका विषय-सम्बन्ध सभी द्रव्य और उनकी कुछ पर्यायोके साथ होता है ।
इस सूत्र में 'द्रव्येषु' शब्द दिया है जिससे जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल सभी द्रव्य समझना चाहिए । उनकी कुछ पर्यायोंको यह ज्ञान जानते हैं, सभी पर्यायोंको नही ।
प्रश्न - जीव, धर्मास्तिकाय, इत्यादि अमूर्त्तद्रव्य है, उन्हें मतिज्ञान कैसे जानता है, जिससे यह कहा जा सके कि मतिज्ञान सब द्रव्योंको जानता है ?
उत्तर - अनिन्द्रिय ( मन ) के निमित्तसे अरूपी द्रव्योंका श्रवग्रह ईहा अवाय और धारणारूप मतिज्ञान पहिले उत्पन्न होता है और फिर