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सम्यग्ज्ञानका वर्णन किया था और इस नवमें अध्यायमें निश्चय सम्यक्चारित्रका (-संवर, निर्जराका ) वर्णन किया। इसप्रकार सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्गका वर्णन पूर्ण होने पर अन्तमे दसवे अध्यायमे नव सूत्रो द्वारा मोक्षतत्त्वका वर्णन करके श्री आचार्यदेवने यह शास्त्र पूर्ण किया है।
५. संक्षेपमे देखनेसे इस शास्त्रमे निश्चयसम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान सम्यग्चारित्ररूप मोक्षमार्ग, प्रमाण-नय-निक्षेप, जीव-अजीवादि सात तत्त्व, ऊर्ध्व-मध्य-अधो-यह तीन लोक, चार गतियां, छह द्रव्य और द्रव्य-गुण-पर्याय इन सबका स्वरूप प्रा जाता है। इसप्रकार आचार्य भगवानने इस शास्त्रमे तत्त्वज्ञानका भण्डार बड़ी खूबीसे भर दिया है। तत्त्वार्थोकी यथार्थ श्रद्धा करनेके लिये कितेक विषयों पर प्रकाश
६-अ० १. सूत्र १ "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" इस सूत्रके सम्बन्धमे श्री नियमसार शास्त्र गाथा २ की टीकामे श्री पद्मप्रभमलधारि देवने कहा है कि "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रः" ऐसा वचन होनेसे मार्ग तो शुद्धरत्नत्रय है। इससे यह सूत्र शुद्धरत्नत्रय अर्थात् निश्चय मोक्षमार्गकी व्याख्या करता है। ऐसी वस्तु स्थिति होनेसे, इस सूत्रका कोई विरुद्ध अर्थ करे तो वह अर्थ मान्य करने योग्य नही है।
___ इस शास्त्रमे पृष्ठ ६ पैरा नं० ४ मे उस अनुसार अर्थ करनेमे आया है उस ओर जिज्ञासुओका ध्यान खिचनेमे आता है ।
७-सूत्र, २ 'तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' यहाँ "सम्यग्दर्शन" शब्द दिया है वह निश्चयसम्यग्दर्शन है और वही प्रथम सूत्रके साथ सुसंगत अर्थ है। कही शास्त्रमें सात तत्त्वोंको भेदरूप दिखाना हो वहाँ भी 'तत्त्वार्थश्रद्धा' ऐसे शब्द आते है वहाँ 'व्यवहार सम्यग्दर्शन' ऐसा उसका अर्थ करना चाहिये।
__इस सूत्रमे तो तत्त्वार्थश्रद्धान शब्द सात तत्त्वोको अभेदरूप दिखानेके लिये है इसलिये सूत्र २ "निश्चयसम्यग्दर्शन" की व्याख्या करता है।