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सम्यग्चारित्रका वर्णन किया है। इसप्रकार मोक्षमार्गका प्ररूपण होनेसे यह शास्त्र 'मोक्षशास्त्र' नामसे पहिचाना जाता है। और जीव-अजीवादि सात तत्त्वोंका वर्णन होनेसे 'तत्त्वार्थ सूत्र' नामसे भी प्रसिद्ध है। (३) शास्त्रके विषय
४. यह शास्त्र कुल १० अध्यायोमे विभक्त है और उनमे कुल ३५७ सूत्र है प्रथम अध्यायमे ३३ सूत्र हैं, उनमें पहले ही सूत्र में निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीनोकी एकताको मोक्षमार्गरूपसे बतलाकर फिर निश्चय सम्यग्दर्शन और निश्चय सम्यग्ज्ञानका विवेचन किया है। दूसरे अध्यायमे ५३ सूत्र हैं; उसमे जीवतत्त्वका वर्णन है । जीवके पांच असाधारण भाव, जीवका लक्षण तथा इन्द्रिय, योनि, जन्म, शरीरादिके साथके सम्बन्धका विवेचन किया है। तीसरे अध्यायमें ३९ तथा चौथे अध्यायमें ४२ सूत्र हैं । इन दोनों अध्यायोमे संसारी जीवको रहनेके स्थानरूप अधो, मध्य और ऊर्ध्व इन तीन लोकोंका वर्णन है और नरक, तियंच, मनुष्य तथा देव-इन चार गतियोंका विवेचन है। पांचवें अध्यायमे ४२ सूत्र हैं और उसमे अजीव तत्त्वका वर्णन है; इसलिये पुदलादि अजीव द्रव्योंका वर्णन किया है; तदुपरान्त द्रव्य, गुण, पर्यायके लक्षणका वर्णन बहुत सक्षेपमे विशिष्ट रीतिसे किया है-यह इस अध्यायकी मुख्य विशेषता है । छठवें अध्यायमे २७ तथा सातवें अध्यायमे ३६ सूत्र है, इन दोनों अध्यायोमे आस्रवतत्त्वका वर्णन है । छठवें अध्यायमे प्रथम आस्रवके स्वरूपका वर्णन करके फिर पाठों कर्मोके आस्रवके कारण बतलाये हैं। सातवें अध्यायमे शुभास्रवका वर्णन है, उसमें बारह व्रतोंका वर्णन करके उसका आस्रवके कारणमे समावेश किया है। इस अध्यायमे श्रावकाचारके वर्णनका समावेश हो जाता है । आठवें अध्यायमे २६ सूत्र है और उनमे बन्धतत्त्वका वर्णन है । वन्धके कारणोका तथा उसके भेदोंका और स्थितिका वर्णन किया है। नवमे अध्यायमे ४७ सूत्र है और उनमे संवर तथा निर्जरा इन दो तत्त्वोका बहुत सुन्दर विवेचन है, तथा निग्रंथ मुनियोका स्वरूप भी बतलाया है। इसलिये इस अध्यायमे निश्वयसम्यक्चारित्रके वर्णनका समावेश हो जाता है। पहले अध्यायमें निश्चय सम्यग्दर्शन तथा निश्चय