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मोक्षशास्त्र दूसरे देशमें बने हुए किसी पचरंगी पदार्थको कहते समय, कहनेवाला पुरुष कहनेका प्रयत्न ही कर रहा है कि उसके कहनेसे पूर्व ही विशुद्धिके बलसे जीव जिस समय उस वस्तुके पाँच रंगोंको जान लेता है उस समय उसके भी 'अनुक्त पदार्थका अवग्रह होता है।
विशुद्धिकी मंदताके कारण पचरंगी पदार्थको कहनेपर जिससमय जीव पांच रंगोको जान लेता है उससमय उसके 'उक्त पदार्थका अवग्रह होता है।
ध्रव-अध्रव-संक्लेश परिणाम रहित और यथायोग्य विशुद्धता सहित जीव जैसे सबसे पहिले रंगको जिस जिस प्रकारसे ग्रहण करता है उसीप्रकार निश्चलरूपसे कुछ समय वैसे ही उसके रंगको ग्रहण करना बना रहता है; कुछ भी न्यूनाधिक नहीं होता; उससमय उसके 'ध्रुव' पदार्थका अवग्रह होता है ।
बारम्बार होनेवाले संक्लेश परिणाम और विशुद्ध परिणामोंके कारण जीवके जिस समय कुछ प्रावरण रहता है और कुछ विकास भी रहता है तथा वह विकास कुछ उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट ऐसी दो दशाओमें रहता है तब, जिस समय कुछ हीनता और कुछ अधिकताके कारण चलविचलता रहती है उस समय उसके अध्रुव अवग्रह होता है । अथवा
कृष्णादि बहुतसे रगोंका जानना अथवा एक रंगको जानना, वहुविध रंगोंको जानना, या एकविध रंगको जानना, जल्दी रंगोंको जानना, या ढीलसे जानना, अनिःसृत रंगको जानना या निःसृत रंगको जानना, अनुक्तरूपको जानना या उक्तरूपको जानना; इसप्रकार जो चल-विचलरूप जीव जानता है सो अध्रुव अवग्रहका विषय है।
विशेष-समाधान-पागममें कहा है कि स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र और मन यह छह प्रकारका लब्ध्यक्षर श्रुतज्ञान है । लब्धिका अर्थ है क्षायोपशमिकरूप (विकासरूप ) शक्ति और 'अक्षर' का अर्थ है अविनाशी । जिस क्षायोपशमिक शक्तिका कभी नाश न हो, उसे लब्ध्यक्षर कहते हैं। इससे सिद्ध होता है कि अनिःसृत और अनुक्त पदार्थोंका भी