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मोक्षशास्त्र
भी रहता है, इसप्रकार श्रोत्र इंद्रियादिके आवरणकी क्षयोपशमरूप विशुद्धि की कुछ प्रकर्ष और कुछ अप्रकर्ष दशा रहती है; उस समय न्यूनाधिकता जाननेके कारण कुछ चल-विचलता, रहती है इससे उस 'अध्रुव' पदार्थका अवग्रह कहलाता है तथा कभी तत इत्यादि बहुतसे शब्दोंका ग्रहण करना; कभी थोड़ेका कभी बहुतका, कभी बहुत प्रकारके शब्दोका ग्रहण करना; कभी एक प्रकारका, कभी जल्दी, कभी देरसे, कभी अनिःसृत शब्दका ग्रहण करना, कभी निःसृतका, कभी अनुक्त शब्दका और कभी उक्तका ग्रहण करना-इसप्रकार जो चल-विचलतासे शब्दका ग्रहण करना सो सब 'अध्रुवावग्रह', का विषय है ।।
शंका-समाधान शंका-'बहु' शब्दोंके अवग्रहमें तत आदि शब्दोंका ग्रहण माना है और 'बहुविध' शब्दोके अवग्रहमे भी तत आदि शब्दोंका ग्रहण माना है। तो उनमे क्या अन्तर है ?
समाधानः-जैसे वाचालता रहित कोई विद्वान बहुतसे शास्त्रोके विशेष २ अर्थ नही करता और एक सामान्य ( संक्षेप ) अर्थका ही प्रतिपादन करता है; अन्य विद्वान बहुतसे शास्त्रोंमें पाये जाने वाले एक दूसरेमें अंतर बताने वाले कई प्रकारके अर्थोका प्रतिपादन करते है। उसीप्रकार बहु और बहुविध दोनों प्रकारके अवग्रहमें सामान्यरूपसे तत आदि शब्दोंका ग्रहण है; तथापि जिस अवग्रहमे तत आदि शब्दोके एक, दो, चार, संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रकारके भेदोका ग्रहण है अर्थात् अनेक प्रकारके भेद-प्रभेद युक्त तत आदि शब्दोका ग्रहण है वह बहुविध बहु प्रकारके शब्दोंको ग्रहण करने वाला अवग्रह कहलाता है; और जिस अवग्रहमें भेद प्रभेद रहित सामान्यरूपसे तत आदि शब्दोंका ग्रहण है वह बहु शब्दोंका अवग्रह कहलाता है।
२-चनु इन्द्रिय द्वारा वह-एक--जिस समय जीव विशुद्धिके बलसे सफेद काले हरे आदि रंगोंको ग्रहण करता है उस समय उसे 'बहु' पदार्थका अवग्रह होता है, और