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________________ अध्याय १ सूत्र १६ ७१ शंका- मुखसे पूरे शब्दके निकलनेको 'निःसृत', कहा है, और 'उक्त' का अर्थ भी वही होता है तब फिर दो में से एक भेद कहना चाहिये, दोनों क्यों कहते हो ? समाधान - जहाँ किसी अन्य के कहनेसे शब्दका ग्रहरण होता है, जैसे किसीने 'गौ' शब्दका ऐसा उच्चारण किया कि 'यहाँ यह गो शब्द है' उस परसे जो ज्ञान होता है वह 'उक्त' ज्ञान है; और इसप्रकार अन्यके बताये बिना शब्द संमुख हो उसका यह 'अमुक शब्द है' ऐसा ज्ञान होना सो निःसृत ज्ञान है । अनुक्त-उक्त- जिस समय समस्त शब्दका उच्चारण न किया गया हो, किंतु मुखमेसे एक वरके निकलते ही विशुद्धताके बलसे अभिप्रायमात्र से समस्त शब्दको कोई अन्यके कहे बिना ग्रहरण कर ले कि 'वह यह कहना चाहता है' - उस समय उसके 'अनुक्त' पदार्थका अवग्रह हुआ कहलाता है । जिस समय विशुद्धिकी मंदतासे समस्त शब्द कहा जाता है तब किसी दूसरेके कहनेसे जीव ग्रहरण करता है उस समय 'उक्त' पदार्थका श्रवग्रह हुआ कहलाता है । अथवा तंत्री अथवा मृदंग आदिमें कौनसा स्वर गाया जायगा उसका स्वर संचार न किया हो उससे पूर्व ही केवल उस बाजेमें गाये जाने वाले स्वरका मिलाप हो उसी समय जीवको विशुद्धिके बलसे ऐसा ज्ञान हो जाय कि 'वह यह स्वर बाजेमें बजायगा,' उसी समय 'अनुक्त' पदार्थका श्रवग्रह होता है । विशुद्धिकी मंदताके कारण बाजेके द्वारा वह स्वर गाया जाय उस समय जानना सो 'उक्त' पदार्थका अवग्रह है । ध्रुव अध्रुव - विशुद्धि के वलसे जीवने जिसप्रकार प्रथम समयमें शब्दको ग्रहण किया उसीप्रकार निश्चयरूपसे कुछ समय ग्रहरण करना चालू रहे - उसमे किंचित्मात्र भी न्यूनाधिक न हो सो 'ध्रुव' पदार्थका अवग्रह है । वारबार होनेवाले संक्लेश तथा विशुद्ध परिरणाम स्वरूप कारणोसे जीवके श्रोत्र इन्द्रियादिका कुछ आवरण और कुछ अनावरण (क्षयोपशम )
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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