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अध्याय १ सूत्र १३
टीका अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान विकल-प्रत्यक्ष है तथा केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है। [प्रत्यक्ष-प्रति+अक्ष ] 'अक्ष' का अर्थ आत्मा है। आत्माके प्रति जिसका नियम हो अर्थात् जो परनिमित्त-इन्द्रिय, मन, आलोक (प्रकाश), उपदेश आदि से रहित आत्माके आश्रयसे उत्पन्न हो, जिसमे दूसरा कोई निमित्त न हो, ऐसा ज्ञान प्रत्यक्षज्ञान कहलाता है ।। १२ ।।
___ मतिज्ञान के दूसरे नाम मतिःस्मृतिःसंज्ञाचिंताभिनिबोधइत्यनर्थातरम् ॥१३॥
अर्थ-[मतिः] मति, [स्मृतिः] स्मृति, [संज्ञा] संज्ञा, [चिंता] चिंता, [अभिनिवोध] अभिनिबोध, [इति] इत्यादि, [अनर्थातरम् ] अन्य पदार्थ नही हैं, अर्थात् वे मतिज्ञान के नामांतर हैं ।
टीका मति-मन अथवा इन्द्रियोसे, वर्तमानकालवर्ती पदार्थको अवग्रहादि रूप साक्षात् जानना सो मति है।
स्मृति-पहले जाने हुये, सुने हुये या अनुभव किये हुये पदार्थ का वर्तमानमें स्मरण आना सो स्मृति है।
संज्ञा-का दूसरा नाम प्रत्यभिज्ञान है। वर्तमानमें किसी पदार्थको देखने पर 'यह वही पदार्थ है जो पहले देखा था' इसप्रकार स्मरण और प्रत्यक्ष के जोड़रूप ज्ञानको संज्ञा कहते है।
चिंता-चितवनज्ञान अर्थात् किसी चिह्नको देखकर 'यहाँ उस चिह्न वाला अवश्य होना चाहिए' इसप्रकारका विचार चिंता है। इस ज्ञानको ऊह, ऊहा, तर्क अथवा व्याप्तिज्ञान भी कहते है।
अभिनिबोध-स्वार्थानुमान, अनुमान, उसके दूसरे नाम है । सन्मुख चिह्नादि देखकर उस चिह्नवाले पदार्थका निर्णय करना सो 'अभिनिवोघ' है।