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मोक्षशास्त्र यद्यपि इन सबमें अर्थभेद है तथापि प्रसिद्ध रूढिके बलसे वे मतिके नामांतर कहलाते है। उन सबके प्रगट होनेमे मतिज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम निमित्त मात्र है, यह लक्षमें रखकर उसे मतिज्ञानके नामान्तर कहते हैं।
यह सूत्र सिद्ध करता है कि-जिसने आत्मस्वरूपका यथार्थ ज्ञान नही किया हो वह आत्माका स्मरण नहीं कर सकता; क्योकि स्मृति तो पूर्वानुभूत पदार्थ की ही होती है, इसीलिये अज्ञानीको प्रभुस्मरण ( आत्मस्मरण ) नही होता; किन्तु 'राग मेरा है' ऐसी पकड़का स्मरण होता है, क्योंकि उसे उसका अनुभव है। इसप्रकार अज्ञानी जीव धर्मके नाम पर चाहे जो कार्य करे तथापि उसका ज्ञान मिथ्या होनेसे उसे धर्मका स्मरण नही होता, किन्तु राग की पकड़का स्मरण होता है।
स्वसवेदन, बुद्धि, मेधा, प्रतिभा, प्रज्ञा इत्यादि भी मतिज्ञानके भेद है। स्वसंवेदन-सुखादि अंतरंग विषयोका ज्ञान स्वसंवेदन है ।
बुद्धि-बोधनमात्रता बुद्धि है। बुद्धि, प्रतिभा, प्रज्ञा आदि मतिज्ञानकी तारतम्यता (हीनाधिकता ) सूचक ज्ञानके भेद हैं ।
अनुमान दो प्रकारके हैं-एक मतिज्ञानका भेद है और दूसरा श्रुतज्ञानका । साधनके देखने पर स्वयं साध्यका ज्ञान होना सो मतिज्ञान है । दूसरेके हेतु और तर्कके वाक्य सुनकर जो अनुमान ज्ञान हो सो श्रुतानुमान है । चिह्नादिसे उसी पदार्थका अनुमान होना सो मतिज्ञान है और उसी (चिह्नादि ) से दूसरे पदार्थका अनुमान होना सो श्रुतज्ञान है ॥ १३ ॥
मतिज्ञानकी उत्पचिके समय निमिच
तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥१४॥
मर्थ-[इन्द्रियानिन्द्रिय] इन्द्रियाँ और मन [तत्] उस मतिज्ञानके [निमित्तम्] निमित्त हैं।