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मोक्षशास्त्र
प्रश्न -- इस सूत्र मे मति और श्रुतज्ञानको परोक्ष कहा है तथापि आपने उसे ऊपर 'प्रत्यक्ष' कैसे कहा है ।
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उत्तर- इस सूत्र मे जो श्र ुतको परोक्ष कहा है सो वह सामान्य कथन है, और ऊपर जो भावश्रुतज्ञानको प्रत्यक्ष कहा है सो विशेष कथन है । प्रत्यक्षका कथन विशेष की अपेक्षासे है, ऐसा समझना चाहिये ।
यदि इस सूत्र में उत्सर्ग कथन न होता तो मतिज्ञानको परोक्ष नही कहा जाता । यदि मतिज्ञान परोक्ष ही होता तो तर्क शास्त्रमे उसे साव्यवहारिकप्रत्यक्ष क्यों कहते ? इसलिये जैसे विशेष कथनमे उस मतिज्ञानको प्रत्यक्ष ज्ञान कहा जाता है उसीप्रकार निजात्मसन्मुख भावश्रुतज्ञानको (यद्यपि वह केवलज्ञानकी अपेक्षासे परोक्ष है तथापि ) विशेष कथनमे प्रत्यक्ष कहा है ।
यदि मति और श्रुत दोनों मात्र परोक्ष ही होते तो सुख-दुःखादिका जो संवेदन ( ज्ञान ) होता है वह भी परोक्ष ही होता, कितु वह संवेदन प्रत्यक्ष है यह सभी जानते हैं । [ देखो वृहत् द्रव्यसंग्रह गाथा ५ की नीचे हिन्दी टीका पृष्ठ १३ से १५, इंगलिश पृष्ठ १७ - १८] उत्सर्ग= सामान्य, - General Ordinance - सामान्य नियम; अपवाद = विशेष Exception - विशेष नियम |
नोट:- ऐसा उत्सर्ग कथन ध्याताके सम्बन्ध में अध्याय १ सूत्र २७-४७ में कहा है, वहाँ अपवादका कथन नही किया है । [ देखो - बृहत द्रव्य संग्रह गाथा ५७, नीचे हिन्दी टीका, पृष्ठ- २११ ] इस प्रकार जहाँ उत्सगं कथन हो वहाँ अपवाद कथन गर्भित है. ऐसा समझना चाहिये ।
प्रत्यक्षप्रमाणके भेद
प्रत्यक्षमन्यत् ॥
अर्थ:-- [ श्रन्यत् ] शेष तीन अर्थात् अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान [ प्रत्यक्षम् ] प्रत्यक्ष प्रमाण हैं |
१२ ॥