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अध्याय १ सूत्र ७ के पूर्व भवका स्मरण होने पर भी बहुतोके उपरोक्त उपयोगका अभाव होता है। ऊपर कहे गये प्रकारका जातिस्मरण प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति का कारण होता है।
शंका-नरकमे ऋषियों (साधुओं) का गमन नही होता फिर वहाँ नारकी जीवोंके धर्म श्रवण किस तरह संभव हो सकता है ?
समाधान-अपने पूर्व भवके सम्बन्धियोंके धर्म उत्पन्न कराने में प्रवृत्त और सभी बाधाओसे रहित सम्यग्दृष्टि देवोंका वहाँ ( तीसरे नरक पर्यन्त ) गमन होता है।
शंका-यदि वेदनाका अनुभव सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण है तो सभी नारकियोंको सम्यक्त्व हो जाना चाहिये क्योंकि सभी नारकियोंके वेदना का अनुभव है।
समाधान-वेदना सामान्य सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण नही है किन्तु जिन जीवोके ऐसा उपयोग होता है कि मिथ्यात्वके कारण इस वेदना की उत्पत्ति हुई है, उन जीवोके वेदना-सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण होता है, दूसरे जीवोके वेदना-सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण नहीं होता।
[श्री धवला पुस्तक ६, पृष्ठ ४२२-४२३ ] शंका-जिन विब दर्शन प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण कैसे होता है ?
___ समाधान-जिनविम्व दर्शनसे ( जो जीव अपने सस्कारको शुद्ध आत्मोन्मुख करे उनके ) निधत्त और निकाचितरूप मिथ्यात्त्वादि कर्म समूहका भी क्षय देखा जाता है और इसी कारण जिन विम्बदर्शन प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण होता है।
( श्री धवला, पुस्तक ६ पृष्ठ ४२७-४२८ ) प्रश्न-शास्त्रमे जिनविम्ब दर्शनसे ( जिन प्रतिमाके दर्शनसे) सम्यग्दर्शन होना बताया है। अतः दर्शन करने वाले सभीको यह फल होना चाहिये किन्तु सभीको वह फल क्यो नही होता ?